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‘खोइंछा भरि के हमरा पठाउ…’शारदा सिन्हा मायके से लेकर आई थी आखिरी विदाई, गांववालों का रो-रोकर है बुरा हाल

बिहार की कोकिला शारदा सिन्हा ने 5 नवंबर 2024 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में आखिरी सांस ली है. शारदा सिन्हा पूरे भारत की पहचान हैं. बिहार में घर में शादी-ब्याह में शारदा सिन्हा के गीत जरूर बजाएं जाते है.

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Nidhi Sharma
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शारदा सिन्हा

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बिहार में घर में शादी-ब्याह में शारदा सिन्हा के गीत जरूर बजाएं जाते है. बिना उनके गीत के शादी अधूरी होती है. शारदा सिन्हा ने 72 साल की उम्र में दिल्ली के एम्स अस्पताल में आखिरी सांस ली है. शारदा सिन्हा को पद्यश्री, पद्य विभूषण, भिखारी ठाकुर सम्मान, बिहार रत्न समेत कई सारे सम्मान मिले हैं. शारदा सिन्हा ने 5 नवंबर 2024 को दुनिया को अलिवदा कह दिया है. 

गांव में पसरा मातम 

शारदा सिन्हा की मौत की खबर पर उनके गांव हुलास के लोगों को उनकी मौत पर विश्वास नहीं हो रहा है. गांव के लोगों का कहना है कि शारदा कह कर गई थी कि वो छठ के बाद अपने मायके आएगी. गांव में रह रहे उनके परिजन कहते हैं कि शादी के माहौल में शारदा सिन्हा ने अपने आंगन में जमकर और खुलकर खूब गीत गाए थे. रिसेप्शन खत्म होने के बाद वापस जाते समय शारदा अपने नैहर (मायका) से मिथिला परंपरा के अनुसार दूब-धान खोइंछा लेकर गई थीं. तब शारदा सिन्हा ने अपनी भाभियों से कहा था कि खोइंछा भरि के हमरा पठाउ. बेटी के जत्ते देबै, नैहर तत्ते बेसी उन्नति करत. (खोइंछा भर कर मुझे ससुराल भेजें. बेटी को जितना नैहर से मिलता है, नैहर उतना ही खुशहाल रहता है).

अब कौन सुनायेगा ससुर की कमाई दिलहे

शारदा सिन्हा की मौत के बाद गांव के लोग शांत होकर अपने घरों में बैठ गए है. गांव के एक बुजुर्ग ने कहा कि अब कौन सुनायेगा ससुर की कमाई दिलहे... गाना. विद्यापति के पद उनके जैसा बहुत कम लोग गाते थे. लगता था जैसे वह खुद गीत में उतर गई हों. बर सुख सार पाओल तुअ तीरे.... सुनते ही लगता है जैसे विद्यापति ने इनके लिए ही लिखा हो. गांववाले कहते हैं कि शारदा सिन्हा जब भी गांव आती थीं तो गांव की बेटी की तरह हर एक लोगों से मिलती थी. उनकी सरलता ने ही उन्हें महान बना दिया. गर्व से यह भी कहा कि शारदा सिन्हा सिर्फ हुलास की ही नहीं, बल्कि पूरे बिहार की बेटी थीं. 

भाभी के साथ गाए गीत 

उनकी चचेरी भाभी निर्मला ठाकुर ठीक से कुछ बोल नहीं पा रहीं. जब से शारदा सिन्हा के बारे में सुना है, तब से वह जैसे खोई-खोई-सी हैं. शुरुआती दिनों में निर्मला भाभी पुराना गीत गाकर शारदा को सिखाती थीं. दोनों मिलकर जंतसार (लगनी) गाती थीं. गीत गाते हुए हंसी-मजाक भी खूब होता था. बाद में जब शारदा सिन्हा का कोई गाना हिट होता था, तो वह खुशी से झूम उठती थीं. दोनों के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन संबंधों में कटुता नहीं आई, जब नौ माह पहले शारदा सिन्हा नैहर आयी थी, तो उनका साथ दे रही उनकी भाभी निर्मला की खुशी का ठिकाना नहीं था. वह गीत गाते-गाते कहती थीं कि शारदा तोहर गला एखनहुं ओहिना छौ. हमर गला तं फंसि जाइए. की खाइ छीही गै. (शारदा, तुम्हारा गला तो अभी भी वैसे ही है. मेरा गला तो फंस जाता है. तुम क्या खाती हो) इस बात पर शारदा हंस देती थी और कहती थी कि हुलास गांव का पानी पिये हैं हम. गला खराब नहीं होगा कभी.

बचपन से ही कहते थे गितगाइन

उनके बड़े भाई नृपेंद्र ठाकुर व छोटे भाई पद्मनाभ कहते हैं कि मेरी बहन करोड़ों में एक थीं. वह जब पुराने घर में गीत गाती थीं तो आसपास के लोग जुट जाते थे. उन्हे बचपन से ही गितगाइन (मधुर कंठ से गीत गाने वाली) कहा जाने लगा था. उनके कंठ में साक्षात सरस्वती का वास था. पुराना खपरैल के घर में वह रियाज किया करती थीं. इसी में उनका बचपन बीता था. यह घर अब टूट चुका है. पिछली बार जब वह आयी थी, तो अपने पुराने घर को बार-बार निहारती थी और इस दौरान पुरानी बातें खूब हुई थीं.

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