वेब सीरिज 'मिर्ज़ापुर' के बाद सफलता के शिखर पर विराजमान दिव्येंदु की सोलो लीड रोल वाली नई वेब सीरीज़ 'बिच्छू का खेल' ZEE 5 और ऑल्ट बालाजी पर रिलीज़ हो चुकी है. 'बिच्छू का खेल' में वो सारे मसाले डाले गए हैं, जिससे वेब सीरिज की सफलता तय होती है. गाली-गलौज से भरपूर डायलॉग, परत-दर-परत साजिशें-खुलासे, भड़काऊ रोमांस, रंगीन-मिज़ाज किरदार... वगैरह वगैरह. यह वेब सीरिज देखने के बाद वैसी ही फीलिंग आती है, जैसे हिंदी का जासूसी उपन्यास पढ़ने के बाद आती है.
वेब सीरिज 'बिच्छू का खेल' जासूसी उपन्यासकर अमित ख़ान के इसी नाम से आए उपन्यास पर आधारित है या यूं कहें कि उस उपन्यास के किरदारों को स्क्रीन पर उतार दिया गया है. 9 एपिसोड की वेब सीरिज 'बिच्छू का खेल' की कहानी वाराणसी में फिल्माई गई है. कहानी की शुरुआत कॉलेज फंक्शन में शहर के नामी वकील अनिल चौबे (सत्यजीत शर्मा) की हत्या से शुरू होती है, जो समारोह में मुख्य अतिथि बनकर पहुंचे थे. वेब सीरिज का नायक अखिल श्रीवास्तव (दिव्येंदु) भरी महफ़िल में अनिल चौबे की हत्या कर थाने में आत्मसमर्पण करने पहुंच जाता है और वहां पुलिस अधिकारी निकुंज तिवारी (सैयद ज़ीशान क़ादरी) को पूरी कहानी बयां करता है. अखिल यह भी बताता है कि वह अनिल चौबे की बेटी रश्मि चौबे (अंशुल चौहान) से प्यार करता है.
अखिल अपने पिता बाबू (मुकुल चड्ढा) के साथ मिठाई की एक दुकान में काम करता है. मिठाई की दुकान अनिल चौबे के बड़े भाई मुकेश चौबे (राजेश शर्मा) की होती है. अखिल का पिता बाबू रंगीनमिजाज है और मुकेश की पत्नी प्रतिमा चौबे (तृष्णा मुखर्जी) से उसके अंतरंग रिश्ते हैं. बाहुबली मुन्ना सिंह (गौतम बब्बर) की हत्या के आरोप में बाबू फंस जाता है और जेल भेज दिया जाता है, जहां उसकी हत्या हो जाती है. अखिल अपने पिता बाबू की हत्या के प्रतिशोध में जलता रहता है और बदला लेने के लिए निकलता है. इस दौरान उसे कई साजिशों की जानकारी होती है. वेब सीरिज में यह देखना दिचलस्प होगा कि अखिल ख़ुद को अनिल चौबे की हत्या के आरोपों से कैसे बचा ले जाता है और साथ ही कैसे अपने पिता के क़ातिल तक पहुंचता है? कुल मिलाकर 'बिच्छू का खेल' यही है.
अगर आपने मिर्जापुर देखी होगी तो 'बिच्छू का खेल' के अखिल में मुन्ना त्रिपाठी की छवि आपको दिखेगी, लेकिन अखिल में दबंगई का भाव नहीं है. हालांकि सीरिज खत्म होते-होते दिव्येंदु त्रिपाठी अखिल को मुन्ना त्रिपाठी के किरदार से अलग करने में सफल होते हैं. रश्मि के किरदार में अंशुल चौहान की केमिस्ट्री बेहतरीन है. सैयद ज़ीशान क़ादरी ने इनवेस्टिगेटिंग अफसर के रूप में प्रभावित किया है तो प्रशंसा शर्मा ने जीशान की पत्नी के रूप में शानदार रोल किया है.
आशीष आर. शुक्ला ने 'बिच्छू का खेल' के निर्देशन को नाम के अनुरूप ही रखा है. बीच-बीच में 80 और 90 के दौर के गाने बैकग्राउंड म्यूजिक के रूप में अच्छी फीलिंग देते हैं. बाबू और अखिल के बीच बाप-बेटे का रिश्ता होने पर भी जो संवाद अदायगी है, वो अपने आप में खुलेपन लिए हुए है. जिब्रान नूरानी का स्क्रीनप्ले तेज़ रफ्तार है और रुकने का मौका नहीं देता. क्षितिज रॉय के तीख़े और चटपटे संवाद किरदारों को सूट करते दिखते हैं. कुछ डायलॉग प्रभावित करते हैं, जैसे-
- जब पूरा सिस्टम आपके ख़िलाफ़ हो तो ख़ुद सिस्टम बनना पड़ता है.
- पब्लिक कन्फर्म सीट वाले को भी उठा देती है.
- भगवान से नहीं तो इस सिस्टम से डरो.
- घास अगर बागी हो जाए तो पूरे शहर को जंगल बना देती है.
कलाकार : दिव्येंदु, अंशुल चौहान, सैयद ज़ीशान क़ादरी, राजेश शर्मा, तृष्णा मुखर्जी आदि.
निर्देशक : आशीष आर. शुक्ला
निर्माता : एकता कपूर, शोभा कपूर
Source : News Nation Bureau