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विश्व स्तर पर रैंसमवेयर हमलों के लिए भारत बना दूसरा सबसे बड़ा टारगेट : चेक प्वाइंट

पिछले तीन महीनों में रैंसमवेयर हमलों में 39 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखने को मिली है और भारत इससे संबंधित खतरों के मामले में सबसे अधिक प्रभावित देशों में अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है.

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Sunil Mishra
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विश्व स्तर पर रैंसमवेयर हमलों के लिए भारत बना दूसरा सबसे बड़ा टारगेट( Photo Credit : File Photo)

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पिछले तीन महीनों में रैंसमवेयर हमलों (Ransomware Attack) में 39 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखने को मिली है और भारत इससे संबंधित खतरों के मामले में सबसे अधिक प्रभावित देशों में अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है. साइबर सिक्योरिटी फर्म चेक प्वाइंट (Ckeck Point) ने मंगलवार को एक शोध रिपोर्ट में यह जानकारी दी. शोध में पता चला है कि वैश्विक स्तर पर 2020 की पहली छमाही की तुलना में पिछले तीन महीनों में रैंसमवेयर हमलों के दैनिक औसत में 50 प्रतिशत का उछाल दर्ज किया गया है.

पिछले तीन महीनों में अमेरिका में रैंसमवेयर के हमले दोगुनी रफ्तार से बढ़े. वहां इस अवधि के दौरान लगभग 98 प्रतिशत मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है. अध्ययन अवधि के दौरान रैंसमवेयर हमलों से सबसे अधिक प्रभावित देशों में श्रीलंका, रूस और तुर्की क्रमश: तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्वभर में रैंसमवेयर से प्रभावित स्वास्थ्य संगठनों का प्रतिशत लगभग दोगुना हो गया है. चेक प्वाइंट में थ्रेट इंटेलिजेंस के प्रमुख लोटेम फिंकेलस्टीन ने एक बयान में कहा, "रैंसमवेयर 2020 में रिकॉर्ड तोड़ रहा है."

उन्होंने बताया कि कोरोनावायरस महामारी के आगमन के साथ ही रैंसमवेयर का चलन शुरू हुआ, क्योंकि संगठनों ने सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए कार्यालयों के बजाय दूरस्थ कार्यबल (रिमोट वर्कफोर्स) पर ध्यान केंद्रित किया. अधिकारी ने कहा, "पिछले तीन महीनों में ही रैंसमवेयर हमलों के मामलों में खतरनाक उछाल देखने को मिला है." रैंसमवेयर हमलों के जरिए किसी भी व्यक्ति, संस्था या कंपनी के कंप्यूटर सिस्टम को हैक करने से लेकर महत्वपूर्ण डाटा चुराने और ब्लैकमेल करने जैसे कई अपराधों को अंजाम दिया जाता है.

वर्तमान समय में रैंसमवेयर हमलों को बड़ी सफाई और बेहतरीन ढंग से अंजाम दिया जाता है, जिसमें डबल एक्सटॉर्शन और लोगों को भुगतान करने पर मजबूर करना भी शामिल है. एक डबल एक्सटॉर्शन अटैक में हैकर्स पहले पीड़ित के डेटाबेस को एन्क्रिप्ट करने से पहले बड़ी मात्रा में संवेदनशील जानकारी निकालते हैं.

बाद में हमलावर उस सूचना को प्रकाशित करने की धमकी देते हैं और पीड़ित से फिरौती की मांग करने लगते हैं. वह डराते हैं कि अगर उन्हें फिरौती का भुगतान नहीं किया जाता है तो वह महत्वपूर्ण सूचना लीक कर देंगे.

Source : IANS

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