Lung Cancer: धूम्रपान, प्रदूषण, एस्बेस्टस, रेडॉन और कार्सोजेनिक प्रोडक्ट्स के संपर्क में आने की वजह से लंग्स कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 2020 में लंग्स कैंसर की वजह से करीब 18 लाख लोगों की मौत हुई थी. लंग्स यानि फेफड़े के कैंसर से पीड़ित मरीजों में आमतौर पर शुरुआती दौर में सर्दी-खांसी और छाती में दर्द के अलावा कोई खास लक्षण नहीं दिखाई देता है. अक्सर इसका पता आखिरी स्टेज में चलता है. इसके अलावा, काम की जगह पर मौजूद खतरनाक चीजें, HIV और परिवार में पहले से यह बीमारी होना भी इसके कारण हो सकते हैं. आपके नाखूनों के आकार से पता चल सकता है कि आपको फेफड़ों का कैंसर तो नहीं है. यह टेस्ट सिर्फ 5 सेकंड में हो जाता है. इसे 'डायमंड फिंगर टेस्ट' कहते हैं. इसे स्कैमरोथ विंडो टेस्ट या विंडो गैप टेस्ट भी कहा जाता है. आप इसे घर पर भी कर सकते हैं. आइए जानते हैं इसके बारे में.
फेफड़ों के कैंसर के लक्षण
3 हफ्ते से ज्यादा समय तक खांसी रहना
सीने में संक्रमण
खांसते समय खून आना
खांसते या सांस लेते समय दर्द होना
सांस फूलना
एनर्जी की कमी
भूख न लगना
लंग्स कैंसर पता लगाने के ट्रेडिशनल तरीके
चेस्ट एक्स-रे
CT स्कैन
PET-CT स्कैन
बायोप्सी
5-सेकंड फिंगर टेस्ट को कैसे करें?
अपने दोनों हाथों के अंगूठे के नाखूनों को एक साथ मिलाएं और उन्हें दबाएं.
आपके नाखूनों के बीच में एक डायमंड शेप की खिड़की बननी चाहिए.
अगर ऐसा नहीं हो रहा है और आपके अंगूठे के नाखूनों या उंगलियों के बीच कोई जगह नहीं बन रही है, तो यह फिंगर क्लबिंग का संकेत हो सकता है.
कैंसर रिसर्च यूके के अनुसार, यह एक ऐसी स्थिति है जो नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर वाले 35% से ज्यादा लोगों में देखी जाती है.
क्लबिंग फेफड़ों के कैंसर का एक संभावित संकेत है और यह फेफड़े, हृदय या डायजेस्टिव सिस्टम में दिक्कतों का संकेत देता है.
अगर आपको अपने नाखूनों के बीच में एक छोटा सी डायमंड शेप दिखाई देती है, तो इसका मतलब है कि आपको क्लबिंग का खतरा कम है.
भारतीयों में कम उम्र में हो रहा है कैंसर
द लैंसेट रीजनल हेल्थ साउथईस्ट एशिया जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि यह निश्चित ही चौंकाने वाली बात है कि फेफड़ों के कैंसर के ज्यादातर मरीज ऐसे हैं जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया है. इस अध्ययन की रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई है. शोधकर्ताओं ने बताया कि पश्चिमी देशों में फेफड़ों के कैंसर का पता चलने की औसत आयु 54 से 70 के बीच है, हालांकि भारत में कम से कम 10 साल पहले 44-48 की उम्र वालों में भी इसका निदान किया जा रहा है.
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