कोरोना वायरस के कहर से पूरी दुनिया कराह रही है. कोरोना से निजात पाने में वैक्सीन को ही सबसे बड़ा हथियार माना जा रहा है. वैक्सीन से बनी इम्युनिटी लोगों में कब तक बनी रहेगी, इसे लेकर भी सवाल उठ रहा है. अब एक ताजा रिसर्च में सामने आया है कि कोरोना के खिलाफ बनी 80 प्रतिशत इम्युनिटी छह महीने में खत्म हो सकती है. अमेरिका में हुए इस रिसर्च को उन लोगों पर किया गया है जिन्होंने फाइजर की वैक्सीन लगवाई थी. रिसर्च में सामने आया है कि वैक्सीन लगने से बनी इम्युनिटी छह महीने में घट सकती है.
किसने किया रिसर्च
इस रिसर्च को केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी और ब्राउन यूनिवर्सिटी ने किया है. रिसर्च में नर्सिंग होम में रहने वाले 120 लोगों और 92 स्वास्थ्यकर्मियों के रक्त के सैंपल का अध्ययन करने के बाद ये दावा किया है. वैज्ञानिकों ने पाया कि जिनकी उम्र 76 वर्ष थी और उनकी देखरेख में लगे लोगों की उम्र औसतन 48 वर्ष थी उनमें छह महीने बाद टीके की दूसरी खुराक के बाद एंटीबॉडीज के स्तर में 80 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की जा रही है. टीकाकरण के छह महीने बाद 70 फीसदी बुजुर्गों के रक्त में वायरस को न्यूट्रलाइज करने की क्षमता बेहद खराब थी.
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दूसरी तरफ इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के एक ताजा रिसर्च में सामने आया है कि एंटीमाइक्रोबियल (Antimicrobials) के ज़्यादा इस्तेमाल के चलते कोरोना के मरीजों में दोबोरा फंगल इंफेक्शन का खतरा बढ़ रहा है. दरअसल एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस रिसर्च एंड सर्विलांस नेटवर्क की नवीनतम सालाना रिपोर्ट इसी शुक्रवार को ही जारी की गई है. इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली सामने आई हैं.
एंटीमाइक्रोबियल है क्या?
जिस तरह एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए किया जाता है. उसी तरह एंटीमाइक्रोबियल का इस्तेमाल इंसानों, जानवरों और पौधों में फंगल इंफेक्शन को रोकने के लिए किया जाता है. कोरोना के मरीजों में फंगल इंफेक्शन का खतरा काफी रहता है. कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों में ब्लैक, ग्रीन और येलो फंगस के मामले सामने आ चुके हैं. इन्हीं के इलाज में इन दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है. आईसीएमआर के मुताबिक एंटीमाइक्रोबियल के ज्यादा इस्तेमाल से पैथोजेन बनते हैं, यानी उस बैक्टीरिया और फंगस का जन्म होता है जो दोबारा फंगल इंफेक्शन पैदा कर रहा है.