देश में आंखों के कैंसर के ज्यादातर मामलों के बारे में तब पता चलता है, जब बहुत देर हो चुकी होती है। ऐसा डाॅक्टरो का मानना है। उनको कहना है इस प्रकार के रोग और उसके लक्षणों को लेकर लोगों को जागरूक करने की जरूरत है, ताकि इसकी रोकथाम, जानकारी और इलाज सुनिश्चित हो सके। ज्यादा देर होने से आंखों की रोशनी जाने के साथ-साथ जान को भी खतरा पैदा हो जाता है।
इससे पहले शंकर नेत्रालय के नेत्र कैंसर विशेषज्ञ बिक्रमजीत पाल ने अस्पताल में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, 'लोगों को मालूम होना जाहिए कि शरीर के अन्य अंगों की तरह आंखों में भी कैंसर हो सकता है। यही नहीं अन्य अंगों के कैंसर से आंखों पर असर पड़ सकता है।'
और पढ़ें: 16-30 साल की महिलाएं रहें सतर्क, हो सकता है सर्वाइकल कैंसर
उन्होंने बताया कि लोगों को बहुत देर हो जाने के बाद रोग का पता चलता है, तब तक रोग गहरा जाता है और वह तकरीबन अंतिम चरण में होता है। इसके अलावा बहुत सारे मरीज मेडिकल प्रोटोकॉल का भी पालन नहीं करते हैं।
उन्होंने बताया कि देश में आंखों में विभिन्न प्रकार के कैंसर के ट्यूमरों का उपचार करने के लिए देश में विशेषज्ञों की भी कमी है।
पाल ने कहा, 'पांच साल से कम उम्र के बच्चों में रेटिनोब्लास्टोमा यानी रेटिना का कैंसर सामान्य है। इसमें भेंगापन और आंखों की पुतली के भीतर सफेद दाग रहता है। यह रोग 20 हजार में एक बच्चे में देखने को मिलता है।'
उन्होंने बताया कि शुरुआती चरण में रोग का पता चलने पर बच्चे और उनकी दोनों आंखों की रोशनी बचाई जा सकती है, लेकिन ज्यादा देर होने से आंखों की रोशनी समाप्त होने के साथ-साथ जान को खतरा भी पैदा हो जाता है।
बता दे कि चार फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है।
और पढ़ें: टीबी रोगियों के लिए 600 करोड़ आवंटित, इलाज के लिए दिए जाएंगे 500 रु
Source : IANS