बीड़ी सस्ती होती है इसलिए देश के ग्रामीण क्षेत्रों में इसे ज्यादा पिया जाता है. डॉक्टरों के अनुसार एक बीड़ी में .2 ग्राम तंबाकू होता है और एक सिगरेट में .8 ग्राम तंबाकू होता है. लेकिन क्या आपको मालुम है कि फिर भी यह सगरेट से ज्यादा खतरनाक है. इसी वजह से नॉर्थ-ईस्ट क्षेत्र में देश में सबसे ज्यादा लंग्स कैंसर के मरीज पाए जाते हैं. ग्लोबल अडल्ट टोबेको सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक देश में 10.7 फीसदी वयस्क तंबाकू का सेवन करते हैं. देश में 19 फीसदी पुरुष और 2 फीसदी महिलाएं तंबाकू लेते हैं. सिर्फ सिगरेट पीने की बात करें तो 4 फीसदी वयस्क सिगरेट पीते हैं. सिगरेट पीने वालों में 7.3 फीसदी पुरूष हैं और 0.6 फीसदी महिलाएं हैं. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय महिलाओं में सिगरेट से ज्यादा बीड़ी पीने की आदत है. देश में 1.2 फीसदी महिलाएं बीड़ी पीती हैं.
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भ्रम में हैं लोग
डॉक्टरों के अनुसार एक बीड़ी में .2 ग्राम तंबाकू होता है और एक सिगरेट में .8 ग्राम तंबाकू होता है फिर भी बीड़ी ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं. लोगों में यह भ्रम है कि बीड़ी में सिगरेट की तुलना में तंबाकू की मात्रा कम होती है इसलिए बीड़ी सिगरेट से कम नुकसानदायक होती है. एक टीम ने 'केस कंट्रोल स्टडी केयर द रिस्क ऑफ बीड़ी एंड सिगरेट इन लंग्स कैँसर' से एक रिसर्च किया था, जिसमें यह बात निकलकर सामने आई थी कि बीड़ी ज्यादा खतरनाक होती है.
पिछले साल लखनऊ के एक होटल में ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (गेट्स) 2016-17 की फैक्ट शीट प्रस्तुत की गई थी. रिपोर्ट आंकड़े चौंकाने वाले थे. मुंबई से आईं कंसल्टेंट सुलभा परशुरामन ने बताया था, "गेट्स-2 सर्वे की रिपोर्ट में 15 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को शामिल किया गया था. केंद्रीय परिवार कल्याण विभाग, डब्लूएचओ व टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज मुंबई द्वारा मल्टी स्टेज सैंपल डिजाइन तैयार किया गया. इसमें देशभर से कुल 74,037 लोगों को व यूपी से 1,685 पुरुष व 1,779 महिलाओं को शामिल किया गया था.
देश में हर छठी महिला है इसमें शामिल
एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में हर छठी महिला तंबाकू का किसी न किसी स्वरूप में सेवन कर रही है. कई महिलाएं जहां मजदूरी करने वाली गुटखा, खैनी, बीड़ी का सेवन कर रही हैं, वहीं कई शौकिया सिगरेट पीने व गुटखा खाना शुरू करने के बाद इसकी लत की शिकार हो गई हैं. गेट्स सर्वेक्षण 2009-10 के अनुसार बिहार में ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्र की तुलना में खैनी का अधिक प्रयोग होता है. ग्रामीण बिहार में 28 फीसदी लोगों की पसंद खैनी थी, जबकि शहरों में 24.8 प्रतिशत की. इस सर्वे के अनुसार भारत में तंबाकू से बने उत्पादों का सबसे अधिक उपभोग 67 प्रतिशत पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में होता है.
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय की तम्बाकू नशा उन्मूलन क्लिनिक के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. सूर्य कान्त का इस विषय पर कहना है कि, 71 प्रतिशत फेफड़े कैंसर और 22 प्रतिशत कैंसर मृत्यु का कारण है तम्बाकू. यदि तम्बाकू नियंत्रण अधिक प्रभावकारी हो और तम्बाकू सेवन में अधिक गिरावट आएगी तो निश्चित तौर पर न सिर्फ कैंसर, बल्कि तम्बाकू जनित सभी जानलेवा रोगों में भी गिरावट आयेगी. तम्बाकू से 15 प्रतिशत कैंसर होने का खतरा बढ़ता है, जैसे कि मुंह के कैंसर, फेफड़े, लीवर, पेंट, ओवरी, ब्लड कैंसर."
तम्बाकू से होते हैं 40 प्रकार के कैंसर
तम्बाकू से लगभग 40 तरह के कैंसर होते हैं, जिसमें मुंह का कैंसर, गले का कैंसर, फेफड़े का कैंसर, प्रोस्टेट का कैंसर, पेट का कैंसर, ब्रेन टयूमर आदि कई तरीके के कैंसर होते हैं. धूम्रपान से हो रहे विभिन्न कैंसरों में विश्व में मुख का कैंसर सबसे ज्यादा है. तम्बाकू से सबसे ज्यादा लोग हृदय रोग से पीड़ित होते हैं और 40 लाख लोग प्रतिवर्ष फेफड़े से संबधित बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं.
Source : News Nation Bureau