कम बोलना और ज्यादा सुनना क्या वाकई में फायदेमंद होता है? दरअसल अक्सर हमने अपने बड़े-बुजुर्गों से ये सुना होगा कि, हमें तभी बोलना चाहिए जब हमें किसी चीज़ की ठोस जानकारी हो. वहीं हमें ज्यादा सुनने की क्षमता होनी चाहिए, क्योंकि इससे हमारी जानकारी में काफी इजाफा होता है. इसके साथ ही कई और भी फायदे होते हैं, जो कम बोलने से हमें और दूसरों के प्रति हमारे व्यवहार में बेहतरी करते हैं. आज इस आर्टिकल में हम ऐसे ही कुछ फायदों पर गौर करेंगे...
गौरतलब है कि, कम बोलने की आदत आपकी बात में गंभीरता लाती है, जब आप कम बोलते हैं, तो लोगों को आपकी बात सुनने में दिलचस्पी आती है. साथ ही इससे आपकी बातों को लोगों का वो अटेंशन मिलता है, जो ज्यादा बोलने वालों को अक्सर नहीं मिलता.
वहीं जब आप ज्यादा सुनते हैं, तो आपके और दूसरे व्यक्तियों के रिश्ते में मजबूती आती है. सामने वालों को ऐसा लगता है, जैसे आपको उनकी बातों की परवाह है और आप उन्हें बहुत मानते हैं. ऐसे में बात करने वाले व्यक्ति को अच्छा महसूस होता है. चलिए कम बोलने और ज्यादा सुनने के कई फायदों को विस्तार से समझते हैं...
सोशल स्किल्स में सुधार: कम बोलने के द्वारा हम अधिक सुनते हैं और अन्य लोगों के विचारों को समझते हैं, जिससे हमारी सोशल स्किल्स में सुधार होता है.
संवाद का स्तर ऊंचा: जब हम कम बोलते हैं और अधिक सुनते हैं, तो हमारी बातचीत का स्तर बढ़ता है और हम दूसरों के साथ अधिक संवाद कर पाते हैं.
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विचारशीलता की वृद्धि: ज्यादा सुनने से हम अन्य विचारों और विचारधाराओं को समझने में सक्षम होते हैं, जो हमारी विचारशीलता को बढ़ाता है.
संबंधों की मजबूती: अधिक सुनने से हम अपने संबंधों को मजबूत करते हैं क्योंकि यह हमें अन्य व्यक्तियों की भावनाओं को समझने में मदद करता है.
ज्ञान और अनुभव का विस्तार: ज्यादा सुनने से हम अन्य व्यक्तियों के अनुभव और ज्ञान का लाभ उठा सकते हैं, जो हमें नई और अधिक सीखने के अवसर प्रदान करता है.
इन तरीकों से, कम बोलने और ज्यादा सुनने से हमारी सोचने की क्षमता बढ़ती है और हमें अधिक संवेदनशील और सहयोगी बनाता है.
Source : News Nation Bureau