चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि अगर महिला डायबिटीज से पीड़ित है और अगर उसकी डायबिटीज कंट्रोल में नहीं है तो मां और गर्भस्थ शिशु दोनों के लिए कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.इसके कारण गर्भपात हो सकता है.विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी स्थिति में अगर जन्म लेने वाले बच्चे का आकार सामान्य से बड़ा है तो सी-सेक्शन आवश्यक हो जाता है.इसके अलावा बच्चे के लिए जन्मजात विकृतियों की आशंका बढ़ जाती है.मां और बच्चे दोनों के लिए संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है.
यह भी पढ़ें ः ज्यादातर पाकिस्तानी नहीं जानते इंटरनेट क्या है, सर्वे में हुआ खुलासा
विश्व मधुमेह दिवस (14 नवंबर ) के अवसर पर इंदिरा आईवीएफ हॉस्पिटल की गॉयनोकोलॉजिस्ट एवं आईवीएफ स्पेशलिस्ट डॉ. सागरिका अग्रवाल ने कहा, "अपने देश में यह बीमारी खानपान, जेनेटिक और हमारे इंटरनल आर्गन्स में फैट की वजह से होती है.गर्भवती महिलाओं को ग्लूकोज पिलाने के दो घंटे बाद ओजीटीटी (ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट) किया जाता है, ताकि जेस्टेशनल डायबिटीज का पता चल सके."
यह भी पढ़ें ः Chhattisgarh Polling: पहले चरण में 70%नहीं, इतना हुआ मतदान, पिछली बार के मुकाबले कम हुई वोटिंग
उन्होंने कहा, "यह जांच प्राय: गर्भावस्था के 24 से 28 हफ्तों के बीच होती है, दो हफ्ते बाद पुन: शुगर की जांच की जाती है.पाया गया कि इस दौरान 10 फीसदी अन्य महिलाओं में जेस्टेशनल डायबिटीज ठीक नहीं हुई थी.इन महिलाओं को इंसुलिन देकर बीमारी कंट्रोल कर ली जाती है.ऐसा कर मां के साथ ही उनके शिशु को भी इस बीमारी के खतरे से बचाया जा सकता है."
यह भी पढ़ें ः अब शादी करने की सलाह देते नजर आएंगे पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी, जानें क्यों
डॉ. सागरिका ने कहा, "डायबिटीज के टाइप वन में इंसुलिन का स्तर कम हो जाता है और टाइप टू में इंसुलिन रेजिस्टेंस हो जाता है और दोनों में ही इंसुलिन का इंजेक्शन लेना जरूरी होता है.इससे शरीर में ग्लूकोज का स्तर सामान्य बना रहता है.गर्भधारण के लिए इंसुलिन के एक न्यूनतम स्तर की आवश्यकता होती है और टाइप वन डायबिटीज की स्थिति में इंसुलिन का उत्पादन करने वाली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं.इस स्थिति में गर्भधारण से मां और बच्चे दोनों के लिए खतरा हो सकता है.दोनों की सेहत पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है."
यह भी पढ़ें ः वायु प्रदूषण से आपके शरीर के कई हिस्सों को पहुंच रहा है नुकसान, बीमारियों का खतरा बढ़ा
उन्होंने कहा कि दूसरी ओर टाइप 2 डायबिटीज में शरीर रक्तधाराओं में ग्लूकोज के स्तर को सामान्य बनाए नहीं रख पाता, क्योंकि शरीर में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का निर्माण नहीं हो पाता.इस स्थिति से निपटने के लिए आहार में परिवर्तन किया जा सकता है और नियमित रूप से व्यायाम का अभ्यास करने से भी इंसुलिन के स्तर को सामान्य बनाया जा सकता है.
यह भी पढ़ें ः निमोनिया से ऐसे बचाएं अपने लाडलों को, नहीं छिनेगी उनकी मुस्कान
डॉ. सागरिका ने कहा कि गर्भावस्था के 12वें हफ्ते में अधिकांश महिलाओं को अतिरिक्त 300 कैलोरी की आवश्यकता हर दिन होती है.साथ ही साथ प्रोटीन की मात्रा में भी पर्याप्त वृद्धि करनी होती है.खुद को सक्रिय बनाए रखना इस दौरान काफी अहम होता है.स्वीमिंग, वॉकिंग या साइकलिंग जैसे कार्डियोवेस्कुलर एक्सरसाइज इस दौरान फिट रहने में मदद करते हैं, लेकिन किसी भी एक्टिविटी को शुरू करने से पहले डॉक्टर की सलाह अवश्य लें.साथ ही कुछ छोटी-छोटी आदतों में बदलाव करके भी इस दौरान स्वस्थ रहा जा सकता है, जैसे हर जगह गाड़ी चलाकर जाने की बजाय थोड़ा पैदल चलने की आदत डालें, लंबे समय तक बैठकर या लेटकर टीवी देखने या कंप्यूटर पर काम करने से बचें.
Source : IANS