Advertisment

अब पांच साल पहले ही खून से ब्रेन कैंसर का लगेगा पता

अमेरिकी शोधकर्ताओं ने किये गए शोध में पाया है कि प्रतिरक्षा गतिविधि में परिवर्तन होने से पांच साल पहले ही ब्रेन ट्यूमर का पता लगाया जा सकता है।

author-image
ruchika sharma
एडिट
New Update
अब पांच साल पहले ही खून से ब्रेन कैंसर का लगेगा पता

ब्रेन ट्यूमर

Advertisment

आजकल की तनाव भरी जिंदगी में सिरदर्द एक आम बात है और इसे हम अक्सर नजरअंदाज कर करते हैं। इसे कम करने के लिए अलग-अलग पेनकिलर भी ले लेते है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सिरदर्द ब्रेन ट्यूमर का लक्षण भी हो सकता है। ब्रेन ट्यूमर से दिमाग में गंभीर रोग पैदा हो जाता है।

मस्तिष्क में लगभग 100 अरब सेल्स पाएं जाते हैं, इसलिए जब हम अपना सही तरीके से ध्यान नहीं रखते, तो इसका सीधा असर हमारे दिमाग में जो सेल्स होते हैं उसमें भी पड़ता है। जब दिमाग सही ढंग से काम नहीं करता तो सेल्स नष्ट होने लगते हैं जिससे ब्रेन कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है।

अमेरिकी शोधकर्ताओं ने किये गए शोध में पाया है कि प्रतिरक्षा गतिविधि (Immune Activity) में परिवर्तन होने से पांच साल पहले ही ब्रेन ट्यूमर का पता लगाया जा सकता है।

ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी से प्रमुख शोधकर्ता जूडिथ श्वार्ट्ज़बाम का कहना है, 'पांच साल के अंदर ब्रेन कैंसर पीड़ित के खून में एक ऐसा प्रोटीन कमजोर हो जाता है जो कि एक प्रतिरक्षा कोशिका से दूसरी कोशिका तक संदेश पहुंचाने में मदद करता है जिसकी मदद से कैंसर होने के पीड़ित को पहचाना जा सकता है।'

और पढ़ें: कॉलेज गर्ल्स के बीच पॉपुलर डेनिम स्टाइल्स की बढ़ रही है डिमांड

पत्रिका 'पीएलओएसएओ' में प्रकाशित एक अध्ययन, ग्लियोमास पर केंद्रित है जो लगभग 80 प्रतिशत मस्तिष्क कैंसर का निदान करता है। सबसे सामान्य प्रकार के ग्लिओमा के लिए औसत जीवित रहने का समय 14 महीने है।

ब्रेन ट्यूमर के लक्षण अलग-अलग होते हैं और इसमें सिरदर्द, स्मृति हानि, व्यक्तित्व परिवर्तन, धुंधला दृष्टि और बोलने में कठिनाई शामिल होती है। औसतन, लक्षणों की शुरुआत के तीन महीने बाद कैंसर का पता चला है और जब ट्यूमर आम तौर पर उन्नत हो जाते हैं। यह किया गया शोध पहले से मस्तिष्क के कैंसर की पहचान करने और अधिक प्रभावी उपचार की अनुमति देने के लिए रास्ता तैयार कर सकता है।

और पढ़ें: 'बॉर्डर' निर्देशक जे.पी. दत्ता ला रहे है 'पलटन', जारी किया शानदार पोस्टर

ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी से प्रमुख शोधकर्ता जूडिथ श्वार्ट्ज़बाम का कहना है, 'कैंसर में साइटोकाइन गतिविधि विशेष रूप से समझने में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ट्यूमर के विकास से लड़ने के मामले में मददगार हो सकता है, लेकिन यह एक खलनायक भी बन सकता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाकर एक ट्यूमर बनाने में तक मदद क्र सकता है।'

शोधकर्ताओं ने 974 लोगों के रक्त के नमूनों का मूल्यांकन किया है। उन्होंने रक्त के नमूनों में 277 साइटोकिन्स का मूल्यांकन किया। शोध में कैंसर विकसित करने वाले लोगों के रक्त में कम साइटोकाइन पाया गया है।

और पढ़ें: चैंपियंस ट्रॉफी 2017: सचिन, सहवाग, युवराज के बाद अब धवन-कोहली बना सकते हैं यह रिकॉर्ड

Source : News Nation Bureau

brain cancer tumor diagnosis
Advertisment
Advertisment