कोरोनावायरस की चल रही घातक दूसरी लहर में अब बच्चे भी गंभीर लक्षणों के साथ बड़ी संख्या में कोविड-19 से संक्रमित हो रहे हैं, जोकि भारतीय अभिभावकों के लिए चिंता बढ़ाने वाली बात है. शहर के डॉक्टरों ने गुरुवार को माता-पिता से आग्रह किया कि वह अपने बच्चों को बाहर न निकलने दें और उन्हें इस खतरनाक वायरस से बचाएं. इससे पहले, नोवेल कोरोनावायरस का बच्चों में बहुत हल्का या कोई प्रभाव नहीं दिखा था. हालांकि, अपने दूसरे दौर में वायरस अब 45 वर्ष से कम उम्र के वयस्कों और बच्चों दोनों के लिए बहुत गंभीर हो रहा है.
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गुरुग्राम स्थित फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में पीडियाट्रिक्स विभाग के प्रमुख और निदेशक डॉ. कृष्ण चुघ ने कहा, 'इस दूसरी लहर में बच्चों में कोविड-19 संक्रमण के काफी नए मामले सामने आ रहे हैं और इनकी संख्या पहले की तुलना में काफी अधिक है.' ज्यादातर बच्चे, जो कोविड-19 से प्रभावित हैं, उनमें मौजूद लक्षण हल्का बुखार, खांसी, जुकाम और पेट से संबंधित समस्याएं हैं. कुछ को शरीर में दर्द, सिरदर्द, दस्त और उल्टी की भी शिकायत है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अक्टूबर 2020 के एक दस्तावेज में बताया था कि कोविड-19 वयस्कों की तुलना में बच्चों में बहुत कम देखा गया है. बच्चों और किशोरों में रिपोर्ट किए गए मामले लगभग 8 प्रतिशत (वैश्विक आबादी का 29 प्रतिशत) दर्ज किए गए हैं. पीएसआरआई अस्पताल साकेत में वरिष्ठ सलाहकार बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सरिता शर्मा ने कहा कि इस दूसरी लहर में सभी आयु वर्ग के बच्चे, यहां तक कि एक वर्ष से कम आयु के बच्चे भी प्रभावित हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि कोविड की नई लहर में बच्चे पहले की तुलना में संक्रमण के लिए अधिक संवेदनशील हैं.
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बच्चों के लिए स्थिति पिछले साल से काफी अलग है, जो कि चिंता बढ़ानी वाली बात है. नई दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के वरिष्ठ सलाहकार बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. धीरेन गुप्ता ने कहा, 'अब अधिक बच्चे 103-104 डिग्री सेल्सियस से अधिक बुखार से प्रभावित हो रहे हैं, जो 5-6 दिनों तक बना रहता है.' उन्होंने कहा कि ऐसे भी कुछ मामले हैं, जिनमें निमोनिया भी देखा गया है. कुछ बच्चों में मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम (एमआईएस-सी) जैसी अधिक गंभीर जटिलताएं भी देखी गई हैं.
विशेषज्ञों ने कहा कि बच्चों में हल्के लक्षणों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए और माता-पिता को बच्चों में संभावित डायरिया, सांस लेने में समस्या और सुस्ती जैसे लक्षणों पर ध्यान रखना चाहिए. उन्होंने खासकर बुखार के साथ इस तरह के लक्षणों पर सतर्क रहने की सलाह दी. विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों में ऐसी समस्याओं को पहचानने में माता-पिता को सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि शुरूआती तौर पर एक्शन लेने से बेहतर परिणाम प्राप्त करने में मदद मिलेगी.
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गुप्ता ने कहा, 'अगर बुखार 5-6 दिनों तक रहता है, तो माता-पिता को अपने बच्चों के रक्तचाप की निगरानी करनी चाहिए. हालांकि, पल्स ऑक्सीमीटर के साथ उनके ऑक्सीजन के स्तर की जांच करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उनमें ऑक्सीजन संबंधी दिक्कतों का सामना करने की ज्यादा संभावना नहीं है. बच्चों के लिए यह डिवाइस अनफिट है.'