कोरोना की तीसरी लहर बच्चों को प्रभावित कर सकती है. ऐसे में सरकार ने बच्चों को इस महामारी से बचाने के लिए तैयारी कर ली है. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में 6 से 12 साल के बच्चों पर कोरोना वैक्सीन का ट्रायल शुरू हो चुका है. बच्चों में कोरोना को लेकर एम्स के प्रोफेसर और प्रेसिडेंट इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन संजय कुमार राय ने न्यूज नेशन से बातचीत में कहा कि बहुत से बच्चों में कोरोना के कोई भी लक्षण नहीं दिखा. उन्होंने आगे बताया कि दिल्ली स्थित एम्स के अलावा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, उड़ीसा के भुवनेश्वर ,अगरतला और पुडुचेरी के 4000 बच्चों और बड़ों पर एम्स की तरफ से विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्पॉन्सरशिप के साथ ज़ीरो सर्वे कराया गया है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 60% बड़े और बच्चे कोरोना संक्रमित हो चुके हैं, लेकिन अधिकांश बच्चों में संक्रमण के लक्षण देखने को नहीं मिले हैं. हालांकि आईसीएमआर के द्वारा आने वाले दिनों में भारत सरकार भी एक बड़े सैंपल साइज का सर्वे करवाएगी, जिसमें बड़ी संख्या में बच्चों का भी सर्वे होगा.
इसी रिपोर्ट के आधार पर डॉ संजय राय ने कहा कि हमें यह देखना होगा कि कहीं टीकाकरण जो बच्चों के लिए बड़ी संख्या में करवाने का दबाव बनाया जा रहा है, वह वेस्टर्न इंटरेस्ट तो नहीं है. दरअसल, बच्चों में अभी तक संक्रमण की वजह से सीवियरिटी देखने को नहीं मिली है.
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बताया जा रहा है कि तीसरी लहर में बच्चे सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं. ऐसे में सरकार इस दिशा में काम कर रही है. छोटे बच्चों पर कोवैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल कराने का उद्देश्य देश में कोरोना की तीसरी लहर शुरू होने के पहले उन्हें टीकाकरण में शामिल किया जाना है.
विशेषज्ञों एवं वैज्ञानिकों की ओर से कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों पर खतरा अधिक बताया जा रहा है, जिसकी वजह से पूरी दुनिया में बच्चों पर टीकों का ट्रायल किया जा रहा है. इसी वैश्विक अभियान के तहत भारत में भी अब बच्चों पर वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल शुरू किया जा रहा है. हाल ही में नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) वी. के. पॉल ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि बच्चों में कोविड-19 संक्रमण की समीक्षा करने और राष्ट्र की तैयारियों को मजबूत करने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह का गठन किया गया है. उन्होंने यह भी बताया कि समूह ने उन संकेतों की जांच की है जो चार-पांच महीने पहले उपलब्ध नहीं थे.