यह बात हम हमेशा से सुनते आए हैं कि एंटीबायोटिक का कोर्स पूरा करना हमेशा जरूरी होता है। परम्परागत तौर पर देखें तो जानकार यही बात कहते रहे हैं बीच में एंटीबायोटिक छोड़ने से शरीर में अत्यधिक प्रतिरोधक बैक्टीरिया विकसित हो जाते हैं। नतीजा ये कि बाद में ये दवाएं बेअसर साबित होने लगती है।
हालांकि, अब कई वैज्ञानिकों ने इन दावों को अब खारिज किया है। एक ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपे रिपोर्ट के मुताबिक कई परिस्थितियों में जल्द एंटिबायोटिक रोकना ज्यादा सुरक्षित है। इससे एंटिबायोटिक के हद से ज्यादा इस्तेमाल को रोका जा सकता है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन के ब्रिगटन एंड ससेक्स मेडिकल स्कूल के रिसर्च में कहा गया है, 'जब इलाज जरूरी से भी ज्यादा समय तक जारी रहता है तो मरीजों को बेवजह रिस्क पर रखा जाता है।'
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दिल्ली के एम्स के डायरेक्टर डॉक्टर रंदीप गुलेरिया के अनुसार हालांकि मरीज द्वारा खुद एंटीबायोटिक के इस्तेमाल को रोक देना ठीक नहीं है। डॉक्टर गुलेरिया के मुताबिक कोई दवा रोका जाना है या नहीं, यह पूरी तरह से मेडिकल टीम पर निर्भर करता है और इस फैसले से पहले चिकित्सा पैटर्न पर ध्यान देना जरूरी है।
वहीं, अपोलो अस्पताल के सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर सुरनजीत चर्टर्जी ने कहा कि अगर मरीज की हालत में सुधार होता है तो दवाओं को रोका जा सकता है।
हालांकि, डॉक्टर गुलेरिया और चटर्जी इस बात पर सहमत नजर आए कि टीबी या टायफायड जैसी बीमारियों में मरीज कुछ दिनों के बाद बेहतर महसूस कर सकता है लेकिन ऐसी हालत में भी एंटीबायोटिक्स को जारी रखना चाहिए। ऐसा नहीं करने से प्रतिरोधक बैक्टीरिया के विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है।
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बहरहाल, ब्रिटिश जर्नल में यह कहा गया है कि कई बैक्टीरिया जैसे स्टाफीलोकोकस औरस हमारे शरीर में मौजूद रहता है और कोई नुकसान नहीं पहुंचाता। लेकिन जब भी कोई मरीज किसी कारण से एंटीबायोटिक्स लेता है तो प्रतिरोधक बैक्टीरिया पहले से मौजूद बैक्टीरिया की जगह ले लेते हैं और इससे भविष्य में इंफेक्शन हो सकता है।
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Source : News Nation Bureau