प्रदूषण से हांफ रही दिल्ली के लिए यह खबर चिंता बढ़ाने वाली है. दीपावली के बाद Delhi-NCR की हवा में घुल रहे जहर के बारे में अगर समय रहते कुछ नहीं किया गया तो आने वाले एकाध साल में यह मौत का तीसरा सबसे बड़ा और विकलांगता का पांचवां सबसे बड़ा कारण बन जाएगा. दीपावली के बाद वायु में प्रदूषकों की मात्रा काफी बढ़ जाती है जिसके कारण बच्चों को कईं गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि जो बच्चे श्वास संबंधी समस्याओं जैसे कि अस्थमा, साइनोसाइटिस, एलर्जी, सर्दी, न्यूमोनिया और एलर्जिक ब्रोंकाइटिस से जूझ रहे हों उन्हें धूएं वाले स्थान से दूर रखें. अगर आपके घर में कोई बच्चा अस्थमा से पीडि़त है तो दवाइयां, नेब्युलाइजर और इनहेलर तैयार रखें.
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दरअसल हम जिस हवा में सांस ले रहे हैं, वह जहरीले प्रदूषक तत्वों और गैसों से भरी है हमारे फेफडों तथा रेस्पीरेटरी सिस्टम को गम्भीर नुकसान पहुंचा रही हैं. इसका परिणाम है कि अस्थमा और सांस लेने में तकलीफ जैसे क्रोनिक ऑब्सट्रेक्टिव पल्नमरी डिजीज (COPD) के मामले बढ़ रहे हैं. विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि जो हवा हम सांस के रूप में लेते हैं 40 सिगरेटों के धुएं जितनी खराब है. वास्तव में यह अनुमान लगाया गया है वैश्विक स्तर पर 2020 तक यह मौत का तीसरा सबसे बड़ा और विकलांगता का पांचवां सबसे बड़ा कारण बन जाएगा. हम विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान को देखें तो दुनिया भर में 80 मिलियन लोग मध्यम से गंभीर स्तर की COPD समस्या से पीडि़त हैं.
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सरोज सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के रेस्पिरेटरी मेडिसिन के सीनियर कंसलटेंट डॉ राकेश चावला का कहना है कि आब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (COPD) को हम हिंदी में कालादमा भी कहते है. इसमें फेफड़े में एक काली तार बन जाती है. यह अस्थमा के दमा से अलग होता है. अस्थमा एलर्जी प्रकार का रोग होता है जोकि वंशागत और पर्यावरण कारकों के मेल द्वारा होता है. फेफड़े का खतरनाक रोग है. इसमें इतनी खांसी आती है कि फेफड़ा बढ़ जाता और रोगी चलने लायक नहीं रहता. यहां तक कि मुंह से सांस छोडना उसकी मजबूरी बन जाती है. इस रोग का सबसे बड़ा कारण धूम्रपान है. गांव में जहां लकड़ी पर खाना बनता है उन स्थानों की अधिकतर महिलाएं सीओपीडी की चपेट में रहती हैं.
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COPD के प्राथमिक लक्षण पहचानना काफी आसान है. अगर दो महीने लगातार बलगम वाली खांसी आती है और यह पिछले दो साल से हो रहा हो तो समझ लीजिए कि आपको डॉक्टर से तुरंत मिलने की जरूरत है. खांसी के सामान्य सिरप और दवाएं इसमें कारगर नहीं होंगी. जांच के बाद ही आपको दवाएं लेनी होंगी. सीओपीडी के लक्षण 35 साल की उम्र के बाद ही नजर आते हैं.
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वहीं डॉ रजत अग्रवाल का कहना है कि COPD का ज्यादातर उपचार ऐसा है जो व्यक्ति खुद भी कर सकता है. हाालांकि COPD की दवाइयां लम्बे समय तक चल सकती है, क्योंकि यह अन्य लक्षण उभरने से रोकती है. यदि आप सीओपीडी के मरीज हैं तो यह ध्यान रखिए कि डॉक्टर की सलाह के बिना दवाइयां बंद नहीं करनी है. इसके अलावा लोगों में नॉन इन्वेसिव वेंटीलेशन (एनआईवी) उपचार के बारे में जागरूकता का अभाव है. जबकि यह सांस लेने में तकलीफ दूर करता है और मौत की जोखिम को बहुत हद तक कम कर देता है.
सीओपीडी की मध्यम या गम्भीर अवस्था वाले मरीजों को एनआईवी दवाई दी जा सकती है. यह रक्त में कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर कम कर देती है और इससे मरीज सामान्य ढंग से सांस ले पाता है. सीओपीडी या संास की समस्या की जोखिम वाले मरीजों को घर के अंदर ही रहने की सलाह दी जाती है, इसलिए यह जरूरी है कि ये मरीज अपने घर के आस-पास का वातावरण सही करें और नीचे बताए हुए जरूरी एहतियात बरतें.
Source : News Nation Bureau