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कोरोना महामारी से स्कूली बच्चों की नींद पर पड़ा असर

शोधकर्ताओं ने पाया कि महामारी के दौरान, किशोरों के जागने और सोने का समय लगभग दो घंटे बाद बदल गया.

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Nihar Saxena
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टोरंटो में हुए शोध में सामने आया कोरोना का साइड इफैक्ट.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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अपने सुबह के स्कूल शेड्यूल पर लौटने वाले छात्रों का अनपेक्षित सकारात्मक जीवनशैली प्रभाव हो सकता है, क्योंकि एक नए अध्ययन में पाया गया है कि महामारी से पहले की नींद के पैटर्न की तुलना में अधिक किशोरों को अनुशंसित मात्रा में नींद मिलती थी. शोधकर्ताओं के अनुसार बेहतर नींद की आदतों को प्रोत्साहित करने से किशोरों के तनाव को कम करने और संकट के समय में सामना करने की उनकी क्षमता में सुधार करने में मदद मिल सकती है. निष्कर्षों ने संकेत दिया कि सुबह के आवागमन को समाप्त करने, स्कूल के शुरू होने में देरी और पाठ्येतर गतिविधियों को रद्द करने से किशोरों को अपनी 'विलंबित जैविक लय' या जागने और बाद में बिस्तर पर जाने की प्राकृतिक प्रवृत्ति का पालन करने की अनुमति मिली.

मैकगिल विश्वविद्यालय के प्रमुख लेखक रेउत ग्रुबर ने कहा, महामारी ने दिखाया है कि स्कूल शुरू होने में देरी से मदद मिल सकती है और इसे अपने छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य का समर्थन करने में रुचि रखने वाले स्कूलों द्वारा लागू किया जाना चाहिए. शोधकर्ताओं ने पाया कि महामारी के दौरान, किशोरों के जागने और सोने का समय लगभग दो घंटे बाद बदल गया. कई किशोर भी अधिक देर तक सोते हैं.

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इन परिवर्तनों का मतलब था कि किशोरों के पास अपना होमवर्क पूरा करने के लिए सप्ताह के दिनों में अधिक 'उपयोग योग्य घंटे' थे और उन्हें सप्ताह के दौरान अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए नींद का त्याग नहीं करना पड़ा. ग्रुबर ने कहा, कम नींद की अवधि और सोते समय उच्च स्तर की उत्तेजना तनाव के उच्च स्तर से जुड़ी हुई थी, जबकि लंबी नींद और सोते समय उत्तेजना के निचले स्तर को कम तनाव से जोड़ा गया है. इससे उबरने के लिए स्कूलों को पढ़ाई के साथ-साथ कुछ ऐसी रचनात्मक गतिविधियों को इस्तेमाल में लाना होगा, जिससे छात्र-छात्राओं का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो और वह तनाव से निकल सकें.

HIGHLIGHTS

  • कोरोना महामारी से किशोरों की नींद हुई दो घंटे प्रभावित
  • देरी से स्कूल शुर होने से कम सो पा रहे हैं छात्र
  • शोधकर्ताओं ने मानसिक स्वास्थ्य पर दिया है जोर

Source : News Nation Bureau

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