जब 29 साल के अफजल आलम जब कुछ दोस्तों के साथ 30 दिसंबर, 2020 को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) डॉट्स सेंटर में बतौर वॉलेंटियर पहुंचे, तो इस बारे में बिहार के मोतिहारी में रहने वाले उनके माता-पिता को भी इसकी जानकारी नहीं थी. आलम ने भारत में बने भारत-बायोटेक कोवैक्सिन का डोज लिया. आलम ने बताया, चूंकि मैं एम्स में कई साल से रक्तदान कर रहा हूं, इसलिए मैं कुछ डॉक्टरों को जानता हूं और जब उन्होंने ट्रायल की बात कही, तो मैं इसका हिस्सा बन गया.
उन्होंने बताया, कोविड-19 के कारण कई लोगों की मौत हुई, लिहाजा मैंने ट्रायल में हिस्सा लेने का फैसला किया ताकि इस बड़े काम में योगदान दे सकूं. ट्रायल के लिए जब हम एम्स डॉट्स सेंटर पहुंचे तो डॉक्टरों ने हमारी वजन और ऊंचाई मापी. धैर्य के साथ हमारे सारे सवालों के जबाव दिए. हमें ट्रायल कराने के लिए मजबूर नहीं किया. इतना ही नहीं वापस जाने का विकल्प भी दिया.
आलम ने कहा, हमें यह भी बताया गया कि किसी भी तरह की विकलांगता या मृत्यु होने की स्थिति में ट्रायल लेने वाले लोगों को वित्तीय सहायता दी जाएगी. वैसे भी मैं तो डोज लेने के लिए दृढ़ था. मुझे कोई तनाव या डर नहीं था और ऐसा शायद एम्स के साथ मेरे जुड़ाव को लेकर था.
डॉक्टरों ने आलम का आरटीपीसी परीक्षण किया और फिर कोवैक्सीन का डोज दिया. आलम समेत अन्य वॉलेंटियर्स को 30 मिनट तक ऑब्जर्व करने के बाद छुट्टी दे दी गई. आलम को डोज लिये हुए 9 दिन बीत चुके हैं और उन्हें अब तक कोई साइड इफेक्ट नहीं हुआ है. आलम ने कहा, मुझे बुखार या कोई अन्य असहजता नहीं हुई. पहले 48 घंटे तक डॉक्टर लगातार संपर्क में रहे. उसके बाद भी उन्होंने हर 2 दिन में जांच की.
डोज लेने के बाद भी वॉलेंटियर्स के लिए सभी कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करना जरूरी है. आलम को अगला डोज 27 जनवरी को मिलने वाला है और उन्हें 3 महीने तक रक्तदान नहीं करने के लिए कहा गया है. इसके अलावा अन्य वॉलेंटियर्स को 6 महीने तक परिवार नियोजन करने के लिए भी कहा गया है.
Source : IANS