हाल के महीनों में लगभग 65 प्रतिशत बच्चों को डिवाइस (मोबाइल, कंप्यूटर आदि) की ऐसी लत लग गई है कि वे इससे आधा घंटे के लिए भी दूर नहीं रह पा रहे हैं. डिवाइस को छोड़ने के लिए कहने पर बच्चे गुस्सा हो रहे हैं, रोना शुरू कर देते हैं और वे माता-पिता की बात नहीं सुन रहे हैं. डिवाइस न मिलने पर बच्चों का व्यवहार चिड़चिड़ा हो रहा है.
जयपुर के जे. के. लोन अस्पताल में चिकित्सकों द्वारा बाल स्वास्थ्य पर कोविड-19 लॉकडाउन के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए किए गए एक सर्वेक्षण में ये तथ्य सामने आए हैं. इस सर्वे में 203 बच्चों पर अध्ययन किया गया.
सर्वेक्षण में कहा गया है कि कुल 65.2 प्रतिशत छात्रों ने शारीरिक समस्याओं के बारे में बताया है, 23.40 प्रतिशत का वजन बढ़ गया, 26.90 प्रतिशत ने सिरदर्द/चिड़चिड़ापन का सामना किया है और 22.40 प्रतिशत छात्रों ने आंखों में दर्द और खुजली के बारे में जानकारी दी है.
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सर्वे में यह सामने आया है कि लॉकडाउन के दिनों में हाई स्क्रीन एक्सपोजर वाले 70.70 प्रतिशत छात्रों को व्यवहार संबंधी समस्याएं आई हैं. इसके अलावा 23.90 प्रतिशत ने अपनी दैनिक दिनचर्या को ही छोड़ दिया है, 20.90 प्रतिशत लापरवाह हो गए, 36.80 प्रतिशत जिद्दी हो गए और 17.40 प्रतिशत ने ध्यान कम लगने के बारे में बताया.
अध्ययन की परिकल्पना बाल रोग विभाग के चिकित्सा अधीक्षक और वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. अशोक गुप्ता ने की. उनके निर्देशन में डॉ. रमेश चौधरी, डॉ. धनराज बागड़ी, डॉ. कमलेश अग्रवाल, डॉ. विवेक अठवानी और डॉ. अनिल शर्मा द्वारा यह अध्ययन किया गया.
कोविड-19 महामारी के कारण प्रचलित लॉकडाउन के मद्देनजर, अध्ययन के लिए इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफार्मों और सोशल मीडिया पर डेटा एकत्र किया गया और डेटा एकत्र करने के लिए नवीनतम और मानक प्रश्नावली का उपयोग किया गया. सहमति प्राप्त करने के बाद, अभिभावकों को प्रश्नावली भेजी गई.
राजस्थान के प्रमुख शहरों जैसे जयपुर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर, अजमेर, गंगानगर, भीलवाड़ा, सीकर, चुरू, अलवर, हनुमानगढ़, नागौर, भरतपुर में लगभग 55 प्रतिशत लड़कों और 45 प्रतिशत लड़कियों से संबंधित और साथ ही राजस्थान के बाहर के शहरों जैसे दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, कोलकाता, मुंबई, आगरा, लखनऊ, चंडीगढ़ से जानकारी जुटाई गई है.
सर्वेक्षण में कहा गया है कि बच्चे घर पर उपलब्ध मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर और टैबलेट का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें मोबाइल सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला उपकरण है. अधिकांश स्कूल औसतन प्रतिदिन एक से आठ घंटे (मतलब तीन घंटे) ऑनलाइन कक्षाओं में बच्चों को व्यस्त रखते हैं. यह निष्कर्ष निकाला गया है कि लॉकडाउन के बाद लगभग सभी बच्चों द्वारा स्क्रीन पर बिताए गए समय में काफी वृद्धि दर्ज हुई है, जिससे उनकी शारीरिक गतिविधि कम हो गई है.
इनमें से लगभग 50 प्रतिशत बच्चों को 20 से 60 मिनट के लिए बिस्तर पर जाने के बाद सोने में कठिनाई होती है और 17 प्रतिशत बच्चे रात में अपनी नींद के बीच में उठते हैं और वापस सोने के लिए 20 से 30 मिनट का समय लेते हैं.
इसकी वजह से बच्चों को दिन में नींद आना, दिन में थकान, सिरदर्द और चिड़चिड़ापन, वजन बढ़ना, शरीर और पीठ में दर्द का सामना करना पड़ा और उनकी शौचालय जाने की आदतें भी बदल गईं.
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लगभग दो-तिहाई बच्चों में व्यवहार परिवर्तन की शिकायतें भी दर्ज की गईं. लगभग छह से सात प्रतिशत बच्चों में सोते समय डर लगने की शिकायत हुई और उनका जिद्दीपन बढ़कर 32 प्रतिशत हो गया. बच्चों में अनियंत्रित क्रोध और नखरे दिखाने की घटनाओं में भी 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
ऑनलाइन कक्षाओं की मांग को पूरा करने के लिए लगभग 38 प्रतिशत परिवारों को एक नया उपकरण खरीदना पड़ा, जिससे उन पर कुछ वित्तीय बोझ भी पड़ा.
समग्र अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया कि कोविड-19 और लॉकडाउन का बच्चों के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर बड़ा नकारात्मक प्रभाव पड़ा. इसके साथ ही उन्हें बेहतर नींद नहीं मिली और उन्हें मानसिक विकार का सामना पड़ा है.