Eight Components of Yoga : महर्षि पतंजलि के अनुसार योग के आठ प्रमुख अंग बताए हैं. इन आठ अंगों के पहले चरण को अगर सफलतापूर्वक कर लिया और अगर मनुष्य में इच्छा शक्ति है तो आठवें चरण तक पहुंचना भी संभव है. ये आठ अंग क्रमशः यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि है. पतंजलि ने कहा है कि ईश्वर को जानने के लिए अपने और इस जन्म के सत्य को जानने के लिए आरंभ शरीर से ही करना होगा. शरीर बदलेगा तो चित्त बदलेगा, चित बदलेगा तो बुद्धि बदलेगी और जब चित पूर्ण रूप से स्वस्थ होता है, तभी व्यक्ति की आत्मा परमात्मा से योग करने में सक्षम होती है. इन सभी अंगों के उपांग भी है. वर्तमान में साधारण व्यक्ति केवल तीन ही अंगों का पालन करते हैं. आसन, प्राणायाम और ध्यान इनमें से भी ध्यान करने वाले व्यक्तियों की संख्या बहुत कम है. बहुत से लोग प्रथम पांच अंगों में ही पारंगत होने का प्रयास करते है. वे योग के आठों अंगों को प्रक्रिया में सम्मिलित नहीं करते. जिस कारण योग का सम्पूर्ण लाभ नहीं मिलता. वास्तव में जो योगी हैं वे आठों अंगों का पालन करके स्वयं को ईश्वर से जोड़तें हैं. वर्तमान में अधिकांश योग करने वाले राजयोग ही करते हैं और इनमें से भी आसन, प्राणायाम और ध्यान सबसे अधिक प्रचलन में है.
अष्टांग (योग के आठ अंग) क्या हैं ?
यम
राजयोग के अष्टांगों के विषय में यम सामाजिक व्यवहार का पालन करने को यम कहते हैं जैसे लोभ ना करना, किसी को प्रताड़ित ना करना, चोरी, डकैती, नशा व्यचार ना करना और बिना कुछ गलत किए सत्य के आधार पर जीवन निर्वाह करना. इस प्रकार के जीवन की शपथ लेना अर्थात आत्मनियंत्रण यम का भाग है.
नियम
नियम का सम्बंध व्यक्ति के आचरण से है, चरित्र, आत्म अनुशासन, आदि एक आदर्श व्यक्ति के अभिन्न अंग है. राजयोग की इस शाखा में इस प्रकार के व्यक्तित्व का अनुसरण करना होता है
आसन
शरीर के अंगों को उचित रूप से संचालित रखने के लिए जो यौगिक क्रियाएं की जाती है, वे आसन का भाग है.
प्राणायाम
प्राणायाम, श्वास नियंत्रण की बहुत विस्तृत प्रक्रिया है. प्राण वायु को संतुलित रूप से ग्रहण करना, नियमित रूप से लंबी और गहरी श्वास लेना आदि इसके भाग है. प्राणायाम बहुत कठिन प्रक्रिया है. इस पर सिद्धि प्राप्त करने वाले व्यक्ति को दीर्घायु और सफल जीवन प्राप्त होता है.
प्रत्यहार
प्रत्यहार का अर्थ है संसार में किसी भी वस्तु या मनुष्य में मुँह या आ सकती ना हो ना. संसार में रहते हुए सभी कार्य करते हुए चाहे वो विवाह करना हो या संतान, उत्पत्ति हो या कोई अन्य कार्य हो, व्यक्ति को प्रत्याहार का पालन करना चाहिए अर्थात सामाजिक कार्य करते हुए भी किसी भी चीज़ से आ सकती नहीं होनी चाहिए.
धारणा
मन की एकाग्रता को धारणा कहते है. एकाग्रता मनुष्य को सफलता की ओर अग्रसर करती है. योग में अनेक ऐसी क्रियाएं और आसन है जो एकाग्रता में वृद्धि करते है.
ध्यान
इस अवस्था में निर्विचार होकर श्वासों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है. पूर्ण ध्यान लेने और छोड़ने की प्रक्रिया पर ही केंद्र होता है. इस प्रकार समय के साथ व्यक्ति ध्यान की प्रक्रिया में सफल होता है, जिससे मन की शांति प्राप्त होती है.
समाधि
जब ध्यान पर नियंत्रण हो जाता है तब व्यक्ति समाधि की अवस्था में पहुंचता है अर्थात पर ब्रह्म में लीन हो जाता है. समाधि की अवस्था में व्यक्ति परम आनंद को प्राप्त करता है.
Source : News Nation Bureau