शहद में मिलावट पर रोक लगाने के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने इसकी गुणवत्ता के नए मानकों को अधिसूचित किया है. इससे शहद उत्पादक किसानों को अपने उत्पाद की बेहतर कीमत हासिल करने में भी मदद मिलेगी. भारत के राजपत्र में अधिसूचित नए मानकों के लागू होने से शहद में 'कॉर्न सीरप', 'राइस सीरप' और 'इंवर्टेड सीरप' (गन्ने के शीरे से तैयार होने वाला सीरप) की मिलावट पर प्रभावी रोक लगेगी. ऐसे सीरप के मिलाने से शहद जमता नहीं है.
साल 1955 से अब तक लागू मानकों के तहत शहद में जैव प्रौद्योगिकी की मदद से ऐसे तत्वों को मिलाया जा सकता था और शहद से मिलते जुलते दिखने के कारण इनका आसानी पता नहीं चलता था. लेकिन नए अधिसूचित मानकों के तहत अब ऐसी मिलावट नहीं की जा सकती है.
राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के कार्यकारिणी सदस्य देवव्रत शर्मा ने बताया, 'नई अधिसूचना से शहद उत्पादक किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य सुनिश्चित होगा जो साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के प्रयासों के अनुरूप है और इससे मधुमक्खीपालक किसानों को भारी लाभ होगा.'
उन्होंने कहा, 'नये मानदंडों की घोषणा करके सरकार ने मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के अपने वायदे को पूरा किया है. इससे शहद में मिलावट करने वालों पर प्रभावी रोक लगेगी.'
शहद के लिए जो नए मानदंड बने हैं उनमें शहद में आद्रता की मात्रा की सीमा को, जो पहले 25 प्रतिशत थी, घटाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया है.
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इसके अलावा इसमें फ्रुकटोज (फलशर्करा) और ग्लूकोज (एफजी) अनुपात के संदर्भ में पहले के अधिनियम में कोई उच्चतम सीमा नहीं थी जिसके कारण शहद में बाहर से फुकटोज की मिलावट कर दी जाती थी जिसके कारण शहद नहीं जमता था.
भारतीय जनमानस में यह गलत फहमी रही है कि शहद नहीं जमता है. ऐसे में फ्रुक्टोज की मिलावट करने वाले इसका फायदा उठाते रहे हैं. लेकिन नये मानदंड में फ्रुकटोज और ग्लूकोज (एफजी) अनुपात की न्यूनतम और उच्चतम सीमा के निर्धारण हो जाने की वजह से अब मिलावट पर रोक लगने की संभावना है.
।शहद में होने वाली किसी तरह मिलावट का पता लगाने के लिए एक नये मानदंड यानी 13 सी (कार्बन 13) परीक्षण को जोड़ा गया है.
(इनपुट पीटीआई से)
Source : News Nation Bureau