वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क की तस्वीरें लेने वाली तकनीकों का उपयोग कर करीब 100 साल पुरानी यह गुत्थी सुलझाने का दावा किया है कि मलेरिया किस तरह से मस्तिष्क को प्रभावित करता है. ओडिशा के राउरकेला में किए गए इस अध्ययन में ‘द सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ कॉम्पलेक्स मलेरिया’ के वैज्ञानिक भी शामिल थे. वैज्ञानिकों को मिली इस सफलता से यह खुलासा हुआ है कि इस घातक रोग का वयस्कों और बच्चों पर अलग-अलग प्रभाव कैसे पड़ता है.
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अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक प्लासमोडियम फाल्सीपैरम परजीवी से होने वाला मलेरिया गंभीर और जानलेवा होता है, जो मनुष्य को एनोफिलीज मच्छरों के काटने से होता है. उनके मुताबिक इस रोग से ग्रसित करीब 20 प्रतिशत लोगों की इलाज के बावजूद मौत हो जाती है. उन्होंने कहा कि मस्तिष्क पर मलेरिया के पड़ने वाले प्रभाव की गुत्थी पिछले 100 साल से वैज्ञानिकों को उलझाए हुई थी.
यह अध्ययन क्लीनिकल इंफेक्सियस डिजिजेज जर्नल में बुधवार को प्रकाशित हुआ है. अध्ययन में अत्याधुनिक एमआरआई स्कैन का उपयोग किया गया ताकि मलेरिया से ग्रसित विभिन्न आयु समूह के लोगों के मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभावों के बीच अंतर की तुलना की जा सके. लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसीन से संबद्ध एवं अध्ययन के सह प्रमुख लेखक सैम वासमर ने कहा कि बरसों तक वैज्ञानिक इस तरह के मलेरिया की पैथोलॉजी को समझने के लिए शव परीक्षण पर निर्भर रहे लेकिन यह इस रोग से जीवित बचे लोगों और इसकी मरने वालों के बीच तुलना करने में सहायक साबित नहीं हुआ.
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उन्होंने कहा, 'जीवित व्यक्ति के मस्तिष्क का अध्ययन करने के लिए न्यूरोइमेजिंग तकनीक का उपयोग कर हम वयस्कों में इस रोग से होने वाली मौत के खास कारणों का पता लगा सके हैं.' सेंटर फॉर स्टडी ऑफ कॉम्पलेक्स मलेरिया के वैज्ञानिक एवं अध्ययन के सह प्रमुख लेखक संजीव मोहंती ने कहा कि अनुसंधान के नतीजों के बाद अब क्लीनिकल परीक्षण करने की योजना बनाई जा रही है. उन्होंने कहा, 'यदि यह सफल रहा तो यह विश्व के सबसे घातक रोगों में शामिल इस रोग से होने वाली लोगों की मौत की संख्या में कमी लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा.'
Source : Bhasha