कोरोना वायरस (Corona Virus) की वैक्सीन की खोज का काम दुनिया में बहुत तेजी से चल रहा है. इस बीच रूस ने वायरस के खिलाफ लड़ने के लिए वैक्सीन बनाने का दावा कर बाजी मार ली. रूस (Russia) कोविड-19 टीके को नियामकीय मंजूरी देने वाला वह पहला देश बन गया है. रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय के गामालेया नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी द्वारा कोरोना वायरस के टीके को बनाया गया है. वैक्सीन को बनाने वाली रूसी कंपनी का दावा है कि यह टीका दो साल तक वायरस से सुरक्षा प्रदान करेगा.
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रूसी हेल्थकेयर मंत्रालय के गामाले नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी के निदेशक अलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग का कहना है कि रूसी वैक्सीन के सुरक्षात्मक गुण दो साल तक बरकरार रहेंगे. एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में उन्होंने दावा किया है कि वैक्सीन की प्रभावी अवधि, इसके सुरक्षात्मक गुण कम समय के लिए नहीं हैं. यह 6 महीने या 1 साल के लिए नहीं बल्कि कम से कम 2 साल तक के लिए प्रभावी रहेगी. इससे पहले रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि वैक्सीन के इस्तेमाल का अनुभव उनमें से एक है और यह दर्शाता है कि इसकी प्रतिरक्षा कम से कम दो साल तक रहेगी ही.
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हालांकि इस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि इस सप्ताह रूस ने जिस टीके को मंजूरी दी है, वह उन 9 में शामिल नहीं है, जिन्हें वह परीक्षण के उन्नत चरणों में मानता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन और साझेदारों ने एक निवेश तंत्र के अंतर्गत नौ प्रयोगात्मक कोविड-19 टीकों को शामिल किया है. डब्ल्यूएचओ विभिन्न देशों को 'कोवेक्स सुविधा' के नाम इस निवेश तंत्र से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है. यह पहल विभिन्न देशों को टीकों तक शुरुआती पहुंच कायम के लिए उन्हें विकसित करने में निवेश करने तथा विकासशील देशों को वित्तीय मदद पहुंचाने की व्यवस्था प्रदान करती है.
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संगठन के महानिदेशक के वरिष्ठ सलाहकार डॉ ब्रूस एल्वार्ड ने कहा, 'इस समय रूस के टीके को लेकर फैसला करने के लिए हमारे पास पर्याप्त सूचना उपलब्ध नहीं है. हम उस उत्पाद की स्थिति, परीक्षण के चरणों और अगला क्या हो सकता है, उस पर अतिरिक्त सूचना के लिए रूस से बातचीत कर रहे हैं.' याद दिला दें कि इस सप्ताह 11 अगस्त को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कोरोना वायरस के लिए विकसित किए गए टीके को मंजूरी देने की घोषणा की थी. हालांकि, इस टीके का अभी लोगों में उन्नत परीक्षण पूरा नहीं किया गया है.