Mental Health : हर किसी को खुश रखने की आदत आपके मेंटल हेल्थ के लिए सही नहीं है. मेंटल हेल्थ पर ध्यान देना उतना ही जरूरी है जितना फिजिकल हेल्थ पर. इसे इग्नोर करना सही नहीं है. अगर आपकी मेंटल हेल्थ अच्छी नहीं है तो आपका सेहतमंद रहना संभव नहीं है. गुस्सा और तनाव तो मेंटल हेल्थ के दुश्मन हैं ही लेकिन क्या आप जानते हैं दूसरों को खुश करने की आदत भी आपको मानसिक परेशानियों का शिकार बना सकती है. इसलिए कोई कितना भी खास क्यों न हो आप अपनी मानसिक स्वास्थ की कमान उसके हाथ में नहीं सौंप सकते. प्लीजिंग मतलब दूसरों को खुश करने में लगे रहने वाले व्यक्ति. इस आदत से वो खुद भी परेशान रहते हैं, लेकिन इसे छोड़ नहीं पाते. इस तरह के लोग आपको घर, पड़ोस और ऑफिस मतलब हर जगह मिल जाएंगे. वैसे तो प्लीजिंग का मकसद दूसरों को हर्ट न करना होता है, लेकिन कुछ मामलों में इसके पीछे अपना स्वार्थ भी छिपा होता है. इसके लिए बचपन की किसी घटना, इमोशनल हर्ट होना, चीजों को जल्दी पाने की जिद्द जैसी कई चीजों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. खैर वजह कोई भी हो इस आदत से आप दूसरों को तो खुश कर ले जाते हैं, लेकिन खुद बहुत परेशान रहते हैं. आज हम आपको इससे बाहर निकलने के तरीके बता रहे हैं.
न कहने में नहीं करें संकोच
दूसरों को बुरा न लग जाए इस चक्कर में कुछ लोग न कहने में बहुत संकोच करते हैं, लेकिन आपको न कहना सीखना होगा तभी आप इस आदत से बाहर निकल पाएंगे. ये थोड़ा मुश्किल हो सकता है पर आपको अपनी मेंटल हेल्थ के बारे में सोचना है. जिसकी शुरुआत इस चीज से करनी होगी.
अपनी प्राथमिकताओं को समझें
सबसे पहले अपनी प्राथमिकताओं को समझें. दूसरों से पहले खुद के बारे में सोचें. इसी एक इग्नोरेंस के चलते आप कब प्लीजर बन जाते हैं, आपको पता ही नहीं चलता. अपनी जरूरतों, ऑब्जेक्टिव्स और वेलबिंग को प्रियोरिटी पर रखें. इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं कि आप स्वार्थी हैं, बल्कि खुद को मेंटली और फिजिकली स्ट्रॉन्ग रखकर आप दूसरों की ज्यादा बेहतर तरीके से मदद कर सकते हैं.
तकलीफ से बचने को सीमाएं निर्धारित करें
अगर आप दूसरों को खुश करने के चक्कर में अंदर ही अंदर क्रोधित हो रहे हैं और न चाहते हुए भी उस काम को कर रहे हैं, तो इसमें सिर्फ और सिर्फ आप अपना नुकसान कर रहे हैं. तो इसका सॉल्यूशन है अपनी सीमाएं निर्धारित करना. अपनी क्षमता से ऊपर जाकर ऐसा कोई काम न करें, जो आपको तकलीफ दें.
हर किसी को खुश रखना संभव नहीं
इस बात को समझ लें. आपकी और सामने वाले की जरूरतें अलग हो सकती हैं, अगर आपने अपने इमोशन को दरकिनार करते हुए सामने वाले व्यक्ति को प्रियोरिटी पर रखा, तो इससे हो सकता है वो खुश हो जाए, लेकिन आप दुखी, तो इसका कोई मतलब नहीं. अंत में तो आप अपनी खुशियों के साथ ही समझौता कर रहे हैं. खुद की केयर सबसे ज्यादा जरूरी है. हर किसी को खुश रखना संभव नहीं होता है.
Source : News Nation Bureau