फंगल इंफेक्शन को हम ज्यादा सीरियसली नहीं लेते, क्योंकि हमें लगता है कि ये काफी मामूली सी चीज है. मगर ऐसा नहीं है, अगर सही समय पर फंगल इंफेक्शन का सही तरह से इलाज नहीं हुआ तो ये हमें बहुत ज्यादा परेशानी में डाल सकता है. खासतौर पर मानसून के मौसम में हम अक्सर फंगल इन्फेक्शन का शिकार होते हैं, वो भी सबसे ज्यादा पैरों पर, लेकिन क्या कभी सोचा है कि आखिर ये फंगल इन्फेक्शन है क्या और ये मानसून में ही हमें अपना शिकार क्यों बनाता है... चलिए जानते हैं...
फंगल इंफेक्शन के कई प्रकार
फंगल संक्रमण या इंफेक्शन के एक नहीं, बल्कि अनेक प्रकार है, जो स्थिति के अनुकूल हमें निशाना बनाते हैं. ये दरअसल फंगल जीवों के कारण होने वाली बीमारी है, जिसके कई अलग-अलग रूप हैं. चलिए जानते हैं...
- कैंडिडिआसिस: त्वचा, मुंह और जननांगों को प्रभावित करने वाला फंगल है.
- ओनिकोमाइकोसिस: नाखून को प्रभावित करता है और संक्रमण की वजह बनता है.
- एस्परगिलोसिस: इस तरह का फंगस सीधा फेफड़ों को निशाना बनाता है.
- टिनिया: ये फंगल का प्रकार आमतौर पर दाद के रूप में जाना जाता है.
- हिस्टोप्लाज्मोसिस: इस तरह के फंगल को एक श्वसन संक्रमण के तौर पर पहचान मिली है.
मानसून में ही क्यों बढ़ता है
आपने भी अक्सर सोचा होगा कि ये फंगल इंफेक्शन मानसून के मौसम में ही क्यों बढ़ता है. तो इसकी सबसे मुख्य वजह है नमी. जी हां.. मानसून तापमान में नमी पैदा करता है, जिससे हमारा शरीर फंगल संक्रमण के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशीलता हो जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि मानसून के मौसम में हवा में उच्च नमी का स्तर कवक में इजाफा दर्ज किया जाता है. इससे जो एक ऐसी अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करता है, जो इस तरह के फंगल इंफेक्शन को बढ़ावा देने में सहायक भूमिका अदा करता है. खासतौर पर पैरों पर, क्योंकि जब आप अगर बंद जूते भी पहने, तब भी नमी और गंदगी पैरों पर मौजूद रहती है, जिससे फंगस को पनपने का मौका मिलता हैौ.
Source : News Nation Bureau