पिछले एक दशक में पुरुषों में नपुंसकता (Impotence) के मामले बढ़े हैं. भारत में शादीशुदा 10 से 15 फीसदी जोड़े बांझपन की समस्या से पीड़ित हैं. आज से एक दशक पहले पुरुषों की हिस्सेदारी सिर्फ 25 फीसदी थी, लेकिन जीवनशैली (Life Style) में बदलाव, प्रदूषण (Pollution) की वजह से अब यह 35 फीसदी तक हो गई है. दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIMS) में आईवीएफ (IVF) तकनीक पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में इस बात का खुलासा हुआ. जिस तरह से दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) में प्रदूषण बढ़ रहा इससे यहां रहने वाले लोगों में नपुंसकता (Impotence) का खतरा बढ़ गया है.
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प्रोफेसर नीता सिंह ने बताया कि पुरुषों में बढ़ती नपुंसकता के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं. इनमें प्रदूषण, तनाव, जीवनशैली में बदलाव और देर से शादी करना शामिल है. नीता सिंह ने कहा कि 30 की उम्र के बाद शादी करने पर शुक्राणुओं की संख्या में भारी कमी आती है. उन्होंने तनाव रहित जीवन जीने और बेहतर जीवनशैली अपनाने की अपील की.
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कॉन्फ्रेंस में विशेषज्ञ ने बताया कि एम्स में IVF तकनीक के जरिए नपुंसकता के शिकार लोगों को बच्चा पैदा करने में मदद की जाती है. यह तकनीक यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन की मदद से जोड़ों को गर्भधारण करने में मदद की जाती है. आईवीएफ की प्रक्रिया में पहले तो गर्भाशय को स्टिम्यूलेट किया जाता है. उसके बाद गर्भाशय से अंडों को लेकर उन्हें लैब में स्पर्म के साथ मिलाकर भ्रूण तैयार किया जाता है. फिर भ्रूण को वापस गर्भाशय में इम्प्लांट किया जाता है.
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बता दें एम्स में हर रोज 50 लोग आईवीएफ तकनीक के इलाज के लिए आते हैं. हालांकि, देश के बहुत कम सरकारी अस्पतालों में यह सुविधा उपलब्ध है. एम्स में आईवीएफ के एक बार की प्रक्रिया में लगभग 60 हजार रुपये खर्च आता है, जबकि निजी अस्पताल इसके लिए पांच से 10 लाख रुपये तक लेते हैं. एम्स में आईवीएफ के लिए इतने अधिक मरीज आ रहे हैं कि यहां लगभग दो साल तक प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है.
Source : News Nation Bureau