भारत में हर साल एक लाख तीस हजार से ज्यादा लोग सड़क दुर्घटना में अपनी जान गवां बैठते है। ऐसे में खून का ज्यादा बह जाना और वक्त पर खून न मिलना जान न बच पाने के मुख्य कारण है।
लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि देश में पर्याप्त ब्लड होने के बावजूद खून की कमी के कारण लोगों की जान चली जाती है।
भारत में पिछले पांच सालों में ब्लड बैंक और अस्पतालों के बीच तालमेल न होने के कारण 6 लाख लीटर खून का बर्बाद होना, इसकी बानगी है।
भारत के ब्लड बैंक सिस्टम में खामी की वजह से करीब खून की 28 लाख यूनिट और 6 लाख लीटर खून बर्बाद हुआ है। किसी की जान बचाने में मददगार खून की बर्बादी के ये आंकड़े बेहद चिंताजनक है।
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन ने याचिकाकर्ता 'चेतन कोठारी' द्वारा दायर आरटीआई के जवाब में इन आंकड़ों को जारी किया है। 6 लाख लीटर खून की बर्बादी यानि 56 पानी के टैंक के बराबर बर्बादी जो पिछले पांच सालों में हुई है। ऐसे में ये बर्बादी अपने आप में ही काफी चौका देने वाली है। हर साल भारत में खून की 30 लाख यूनिट कम पड़ जाती है।
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खून की कमी, प्लाज्मा की कमी के कारण मातृ मृत्यु दर में भी इजाफा हुआ है। सड़क या अन्य किसी घटना में खून ज्यादा बह जाने के कारण और समय पर खून न मिलने की वजह से हजारों लोग अपनी जान खो बैठते है।
भारत में 1,050 ब्लड बैंक हैं जिनमें से सिर्फ 74 फीसद ही काम कर रहे है। तेलंगाना में 31 में से 13 जिले में ब्लड बैंक नहीं है।
इसके बाद छत्तीसगढ़ जहां 11 जिले, अरुणाचल के 9 जिले, मणिपुर और झारखंड के 9-9 जिले, यूपी के चार जिले में ब्लड बैंक नहीं हैं। इसके अलावा नागालैंड, उतरांचल, त्रिपुरा, कर्नाटक के हर तीन जिलों में ब्लड बैंक की सुविधा मौजूद नहीं है।
सिक्किम के दो जिलों में ब्लड बैंक नहीं है जबकि महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और अंडमान निकोबार द्वीप समूह के एक-एक जिले में ब्लड बैंक नहीं है। बिहार, असम और मेघालय में से हर राज्य के पांच जिले बगैर ब्लड बैंक के हैं।
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महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में सबसे ज्यादा खून की बर्बादी होती है। इन राज्यों में अस्पतालों ने न सिर्फ पूरे खून को फेंक (Discard) दिया बल्कि लाल रक्त कोशिकाओं और प्लाज्मा जैसे जीवन-बचत के घटक भी फेंक फेंक दिए गए।
महारष्ट्र एक ऐसा राज्य है जिसने खून की यूनिट जमा करने में 10 लाख का आंकड़ा पार किया है। खून की बर्बादी में भी ये राज्य सबसे आगे है। खून की बर्बादी करने में महाराष्ट्र के बाद पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश की गिनती होती है।
उत्तर प्रदेश और कर्नाटक ने भी ताजा जमे हुए प्लाज्मा की ज्यादा बर्बादी की है। यह आश्चर्यजनक है कि यह उत्पाद कई फार्मा कंपनियों द्वारा एल्ब्यूमिन उत्पादन करने के लिए आयात किया जाता है।
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सबसे चिंताजनक बात ये है कि 50 प्रतिशत फेंकी गई यूनिट प्लाज्मा की थी जो कि एक साल तक इस्तेमाल की जा सकती है। रक्त और लाल रक्त कोशिकाओं के 35 दिनों के शैल्फ जीवन से भी ज्यादा इसे इस्तेमाल किया जा सकता है।
इस बर्बादी का जिम्मेदार रक्त बैंक और अस्पताल के बीच तालमेल न होना एक कारण है। ब्लड डोनेशन कैंप 1,000 से लेकर 3,000 तक खून की यूनिट जमा करते है। इन जमा की गई यूनिट को रखने के लिए उचित जगह और इंतजाम नहीं है जिसकी वजह से इस तरह की लापरवाही आंखें मूंद कर हो रही है।
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HIGHLIGHTS
- भारत के ब्लड बैंक सिस्टम में खामी की वजह से करीब खून की 28 लाख यूनिट और 6 लाख लीटर खून बर्बाद हुआ है
- ये आंकड़े राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन ने याचिकाकर्ता 'चेतन कोठारी' द्वारा दायर आरटीआई प्रश्न करने के बाद जारी किये है
Source : News Nation Bureau