नाइट शिफ्ट (Night shift) में काम करने वालों में इंसोम्निया (Sleeping disorder) का खतरा सबसे ज्यादा बढ़ जाता है. इनमें आईटी सेक्टर, कॉल सेंटर, पत्रकारिता (Journalism) क्षेत्र से जुड़े लोगों की तादात सबसे ज्यादा होती है. यहां काम करने वाले एंप्लाई कभी दिन में काम करते हैं तो कभी रात की शिफ्ट में काम करते हैं, ऐसे में उनकी नींद पूरी नहीं हो पाती है. सोने और जागने का समय निर्धारित नहीं हो पाता है. ज्यादा सोना और कम सोना दोनों ही स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ा खतरा है. एक वैज्ञानिक रिसर्च के मुताबिक कम या ज्यादा सोने से पुरूषों में कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है.
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लंबे समय से Insomnia की शिकायत के बावजूद लापरवाही बरतने पर डिप्रेशन और एनजाइटी (anxiety) जैसी मानसिक बीमारी भी हो सकती है. मनोरोग विशेषज्ञयों के अनुसार, स्लीप अवेक साइकल डिस्टर्ब होने की वजह से लोग इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं. क्योंकि नाइट शिफ्ट में काम करने वाले रात को सो नहीं पाते हैं और दिन में सही तरीके से नींद भी पूरी नहीं कर पाते है. स्वस्थ शरीर और स्वस्थ दिमाग के लिए 7-8 घंटे की नींद जरूरी है. कुल मिलाकर आबादी का एक तिहाई हिस्सा इंसोम्निया बीमारी का शिकार है. इनमें बुजुर्ग और युवा दोनों ही आते हैं.
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क्या हैं लक्षण
- बहुत देर में नींद आना.
- सुबह जल्दी नींद नहीं खुलना.
- रातभर रुक-रुककर नींद आना.
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- सुबह फ्रेश फील नहीं करना.
- हर वक्त मोबाइल का यूज.
- खाना खाने का सही समय न होना.
कैसे करें बचाव
- सोने से पहले तनाव मुक्त हो जाएं.
- सोने से पहले योग करें और गहरी सांस लेने जैसे व्यायाम करें
- सोने और जागने का समय निर्धारित करें
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- दोपहर को 30 मिनट से ज्यादा न सोएं
- सोने से पहले चाय, काॅफी, कोल्ड ड्रिंक आदि का सेवन न करें
- सोने से पहले हल्का खाना खाएं
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- सोने से पहले तला-भुना, अधिक मसालेदार भोजन न करें
- शराब और नशीले पदार्थों का सेवन न करें
- गर्म दूध पीकर सोएं तो अच्छी नींद आएगी
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यदि इंसोम्निया बीमारी से ग्रसित व्यक्ति इनका पालन करता है तो आपकी 80 प्रतिशत बीमारी अपने आप ही ठीक हो सकती है, आप कुछ बचाव करके इस बिमारी से निजात पा सकते हैं.
Source : Akanksha Tiwari