भारत में 'एकीकृत औषधीय प्रणाली', यानी एलोपैथिक, होम्योपैथिक, यूनानी, आयुर्वेदिक आदि के समन्वय से एक चिकित्सा प्रणाली और सभी मेडिकल कॉलेजों के लिए एकीकृत पाठ्यक्रम लागू करने की मांग वाली जनहित याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को नोटिस जारी किया है. याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका के अनुसार, एलोपैथी, आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी और होम्योपैथी के अलग-अलग तरीकों से चिकित्सा के बजाय चिकित्सा पद्धति और चिकित्सा संबंधी शिक्षा 'समग्र' होनी चाहिए, यानी सभी चिकित्सा पद्धति को मिलाकर एक चिकित्सा पद्धति और शिक्षा व्यवस्था होनी चाहिए.
अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि मौजूदा समय में सभी का ट्रीटमेंट, शिक्षा अलग अलग है, उनके बीच समन्वय नहीं, यदि सभी को मिलाकर एक पद्धति तैयार की जाए तो वो बेहद प्रभावी होगी, मरीजों को ज्यादा लाभ मिलेगा. भारत की मौजूदा स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि भारत की लगभग 70 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, वहीं दूसरी ओर 52 प्रतिशत एलोपैथिक डॉक्टर सिर्फ पांच राज्यों में प्रैक्टिस कर रहे हैं. ये राज्य हैं- महाराष्ट्र (15%), तमिलनाडु (15%), कर्नाटक (10%), आंध्र प्रदेश (3%) और उत्तर प्रदेश (3%). इससे जाहिर होता है की ग्रामीण भारत मौजूदा चिकित्सा प्रणाली से दूर है.
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इस संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, आयुष मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, गृह मंत्रालय और कानून एवं न्याय मंत्रालय को प्रतिवादी बनाया गया है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की खंडपीठ ने केंद्र को जनहित याचिका पर 8 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 8 सितंबर को होगी.
Source : Avneesh Chaudhary