इंसान और जानवर सभी के पास देखने के लिए आंखें होती हैं. अगर आंखें न हों तो न तो इंसान और न ही जानवर कुछ देख सकते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हम देख क्यों पाते हैं? आंखों में ऐसी कौन सी चीजें हैं जिनके कारण हम कुछ भी देख सकते हैं? आज हम आपको इस खबर में वो मुख्य कारण बताएंगे जिसके चलते कोई भी इंसान या जानवर देख पाता है. आंखों पर रिसर्च करने वाले चार्ल्स डार्विन भी सही से डिफाइन नहीं कर पाए थे कि आंखों को कैसे विकास हुआ था. ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि क्या वो चीजे है, जिसके कारण देख पाते हैं. वर्टिब्रेड जीवों की आंखों का विकास हुआ है.
क्या कहती है शोध?
एक शोध के अनुसार हमें अपनी दृष्टि एक बैक्टीरिया से मिली है. जिससे हमारे शरीर में वह जीन आ गया है, जो रेटिना को प्रकाश के प्रति सक्रिय बनाता है. यह शोध हाल ही में प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुआ है. जिसमें सिडनी यूनिवर्सिटी के रेटिनल बायोलॉजिस्ट लिंग झू ने अपनी रिपोर्ट दी है. लिंग झू के मुताबिक, रीढ़धारी जीवों की आंखें विकसित तो हुई है लेकिन पूरी प्रक्रिया काफी जटिल है.
इसमें कई तरह के जीन पाए गए हैं, दरअसल बैक्टीरिया बहुत तेजी से बदलते हैं. वे नई जींस को अपनी ओर खींच लेते हैं. जींस भी वायरस को आकर्षित करती है. डीएनए के इन छोटे टुकड़ों को ट्रांसपोज़न कहा जाता है.
फ्लोटिंग जींस भी कहते हैं
ट्रांसपोसॉन को आप फ्री फ्लोटिंग डीएनए भी कह सकते हैं. 2001 में जब पहली बार इंसानों की जीनोम सीक्वेंसिंग की गई तो पता चला कि इंसान के शरीर में 200 ऐसे जीन हैं जो बैक्टीरिया से आए हैं. ये बैक्टीरिया अलग-अलग जगहों पर मौजूद होते हैं. कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सैन डिएगो में बायोकेमिस्ट मैथ्यू डोहर्टी और उनकी टीम ने जीवों की कई और प्रजातियों के जीनोम अनुक्रमण का अध्ययन किया.
मैथ्यू ने आगे बताया कि ये जीन सबसे पहले हड्डियों वाले प्राणियों में दिखाई दिए. फिर वह विकास करता गया. विभिन्न प्रजातियों के बीच स्थानान्तरण होता रहा है. इस जीन को आईआरबीपी कहा जाता है. यानी इंटरफोटोरिसेप्टर रेटिनोइड-बाइंडिंग प्रोटीन. यह जीन हमें देखने की शक्ति देता है. इसके कारण हमारी आंखें रोशनी के अनुरूप ढल जाती हैं.
Source : News Nation Bureau