भारत में हर दो में से एक कॉर्पोरेट कर्मचारी को हो सकता है मानसिक स्वास्थ्य समस्या का जोखिम. ये दावा है एक हालिया अध्ययन का. साथ ही इस अध्ययन में बताया गया है कि पुरुष कर्मचारियों की तुलना में महिला कर्मियों में किसी न किसी प्रकार की मानसिक स्वास्थ्य समस्या का जोखिम अधिक है. ध्यान दो कि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां किसी भी उम्र, लिंग वाले व्यक्ति को प्रभावित कर सकती हैं, ऐसे में हम सभी को ही मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना जरूरी है. वहीं खासतौर पर कॉर्पोरेट कर्मचारी के तो कार्यात्मक उत्पादकता पर इसका असर पड़ता है. इस तरह की परेशानी आगे चल कर कई गंभीर बीमारियों में तबदील हो सकती है, लिहाजा आगे इससे जुड़ी और कई बाते जानते हैं...
मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहे कॉर्पोरेट कर्मचारी
आठ भारतीय शहरों और ई-कॉमर्स, एफएमसीजी सहित 10 क्षेत्रों के 3,000 कॉर्पोरेट कर्मचारियों पर हुए सर्वेक्षण में मालूम चला कि हर 2 में से एक कॉर्पोरेट कर्मचारी खराब मानसिक स्वास्थ्य के उच्च जोखिम में है. साथ ही ये भी मालूम चला कि इसी के चलते पिछले साल लगभग 10 में से आठ कर्मचारियों ने मानसिक थकावट के चलते, कम से कम दो सप्ताह के लिए काम छोड़ दिया था. कॉर्पोरेट कर्मचारियों का मानना है कि धीरे-धीरे इस कारण वर्क-लाइफ बैलेंस काफी खराब हो गया है.
विशेषज्ञों का क्या है कहना?
मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि युवाओं में बढ़ रही मानसिक स्वास्थ्य की समस्या काफी चिंताकारक है. क्योंकि इसका असर सीधे तौर पर कई बीमारियों का खतरा बनती है. वहीं लोगों की कॉर्पोरेट लाइफ में अब भी मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कलंक का भाव है, जिस वजह से कर्मचारी अपनी परेशानी एक-दूसरे से साझा नहीं कर पाते हैं. एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर ऑफिस में सपोर्टिव माहौल बनाया जाए, तो चिंता और अवसाद से जूझ रहे कॉर्पोरेट कर्मचारियों की मानसिक स्थिति पर नियंत्रण रखने में मदद मिलेगी.
Source : News Nation Bureau