वायरस को रोकने के लिए टीकाकरण समेत IDSP को बढ़ावा देने की जरुरत

कोविड-19 महामारी के बीच टोमैटो फ्लू, इबोला, खसरा और अन्य संक्रमणों में खतरनाक वृद्धि की आशंका बढ़ने के साथ, प्रमुख स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने टीकाकरण और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों को मजबूत करने और एकीकृत रोग निगरानी परियोजना (आईडीएसपी) को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया है. आईडीएसपी देश में विकेंद्रीकृत, राज्य-आधारित निगरानी कार्यक्रम है. इसका उद्देश्य आसन्न प्रकोपों के शुरूआती चेतावनी संकेतों का पता लगाना और समयबद्ध तरीके से प्रभावी प्रतिक्रिया शुरू करने में मदद करना है.

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IANS
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(source : IANS)( Photo Credit : Twitter )

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कोविड-19 महामारी के बीच टोमैटो फ्लू, इबोला, खसरा और अन्य संक्रमणों में खतरनाक वृद्धि की आशंका बढ़ने के साथ, प्रमुख स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने टीकाकरण और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों को मजबूत करने और एकीकृत रोग निगरानी परियोजना (आईडीएसपी) को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया है. आईडीएसपी देश में विकेंद्रीकृत, राज्य-आधारित निगरानी कार्यक्रम है. इसका उद्देश्य आसन्न प्रकोपों के शुरूआती चेतावनी संकेतों का पता लगाना और समयबद्ध तरीके से प्रभावी प्रतिक्रिया शुरू करने में मदद करना है.

एम्स नई दिल्ली के सेंटर फॉर कम्युनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ हर्षल आर साल्वे ने आईएएनएस को बताया, मौजूदा समय में खसरा, ट्यूबरक्लोसिस जैसे फिर से उभर रहे संक्रमण भारत में प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियां हैं. महामारी के दौरान, मौजूदा राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों को संसाधनों के डायवर्जन और बदलती प्राथमिकताओं के कारण बहुत नुकसान हुआ है.

साल्वे ने जोर देकर कहा, यह सही समय है कि हमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों जैसे कि टीकाकरण, ट्यूबरक्लोसिस, अधिक संसाधनों के साथ आईडीएसपी, बुनियादी ढांचे के विकास और नई राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ क्षमता निर्माण को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए.

विशेष रूप से हाल की महामारी को ध्यान में रखते हुए, नए और अलग-अलग तरह के संक्रमण पैदा करने वाले बगों के बार-बार उभरने से जनसंख्या के लिए खतरा पैदा हो गया है.

विशेष रूप से इबोला, खसरा और हाल ही में टोमैटो फ्लू जैसे विषाणुओं के कारण होने वाली अन्य बीमारियां दुनिया में फैल रही हैं. इनमें से अधिकांश संक्रमण मनुष्यों और वन्यजीवों के बीच परस्पर संबंध का परिणाम है.

फरीदाबाद के मारेंगो क्यूआरजी अस्पताल के सलाहकार-आंतरिक चिकित्सा डॉ अनुराग अग्रवाल ने कहा, इनमें से अधिकतर संक्रमण वायरस के कारण होते हैं जो आसानी से रुप बदल लेते हैं और एक ऐसा रूप विकसित करते हैं जिसमें वे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली से बचने में सक्षम होते हैं. इसके जेनेटिक कोड में निरंतर बदलाव और प्रभावी इलाज दवाओं या टीकों के विकास में चुनौतियां पेश करते हैं.

फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में सलाहकार के तौर पर काम करने वाली डॉ. नेहा रस्तोगी ने कहा, अब हम महामारी का साया देख रहे हैं. एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोधी सुपरबग/बैक्टीरिया ने मौजूदा परि²श्य में एंटीमाइक्रोबियल के बड़े पैमाने पर उपयोग के कारण एक बड़ी सुपर महामारी का निर्माण किया है. इन मल्टीड्रग प्रतिरोधी रोगजनकों के चल रहे संचरण के साथ, इस मौन महामारी से मुकाबला करना अनिवार्य है.

प्रतिरक्षा प्रणाली की एक जटिल परस्पर क्रिया और बदलती पर्यावरणीय सेटिंग्स के साथ, नए वायरस और उनके वेरिएंट लगातार बढ़ रहे हैं.

जलवायु परिवर्तन और तेजी से शहरीकरण, बढ़ी हुई कनेक्टिविटी के कारण आने वाले दशकों में इस तरह के वायरस का खतरा बढ़ जाएगा.

गुरुग्राम के सी.के. बिड़ला अस्पताल के आंतरिक चिकित्सा विभागाध्यक्ष डॉ. रवींद्र गुप्ता ने कहा, पर्यावरण में बदलाव और भूमि उपयोग के पैटर्न में बदलाव के कारण जानवरों और मनुष्यों के बीच संपर्क बढ़ा है.

नतीजतन, जानवरों से वायरस इंसानों में फैल रहे हैं और इस तरह मानवता के लिए समस्याएं पैदा कर रहे हैं.

ग्लोबल वामिर्ंग, अपने आप में, नए वायरस के उभरने का एक और महत्वपूर्ण कारण है. रोग निगरानी को मजबूत करने और मच्छरों, चींटियों आदि जैसे वैक्टरों के विकास के लिए जैविक कारकों को समझने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए उचित उपाय करने की सख्त आवश्यकता है.

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Source : IANS

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