कैंसर से अब डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अब इसका इलाज समय रहते ही हो जाएगा. दरअसल, लाइफ साइंस क्षेत्र की अग्रणी कंपनी Avesthagen Limited ने एक खास प्रोजेक्ट के तहत कैंसर के इलाज की समय पूर्व पहचान और उसके इलाज की गति बढ़ने की घोषणा की है. प्रोजेक्ट के तहत कंपनी ने कैंसर के शोध अध्ययन के लिए भारतीय और पारसी समुदायों को अपने केंद्र में लिया है और इसका लक्ष्य जीन्स, पर्यावरणीय कारकों और रोगों के बीच की कड़ियों को समझना है. यह प्रोजेक्ट शुरू में फेफड़ों, मुंह और खाने की नली के कैंसर के विकास में धूम्रपान की भूमिका पर अध्ध्यन करेगा.
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2021 तक 15 हजार पारसियों को शामिल करने की योजना
बता दें कि वर्ष 2008 से Avestagenome Project पारसी लोगों के ख़ून के नमूनों और व्यापक रोगी आंकड़ों का बायोबैंक तैयार कर रहा है जिसमें 4,500 से भी अधिक लोगों को शामिल किया जा चुका है और वर्ष 2021 तक इसमें 15,000 पारसियों को शामिल करने की योजना है. इस जनसमूह में ख़ासतौर पर लंबी उम्र और उम्र से जुड़े विकारों के आण्विक आधार की पड़ताल की जाएगी जिसमें कैंसर, हृदयवाहिकीय रोग, मधुमेह और तंत्रिका संबंधी विकारों पर विशेष ज़ोर रहेगा. यह प्रोजेक्ट रोग के पूर्वानुमान के बारे में गहरी जानकारी देगा और बायोमार्कर्स, पूर्वानुमानी डाइग्नोस्टिक जांचों, नई दवाओं, और चिकित्साओं की पहचान और विकास की गति बढ़ाएगा.
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अमेरिका स्थित Foundation for a Smoke-Free World ने Avesthagen Limited को फेफड़ों और तंबाकू-संबंधी कैंसर की शोध को वरीयता देने के लिए हाल ही में एक अनुदान भी स्वीकृत किया है. Avesthagen लिक्विड बायोप्सी, नेक्स्ट-जनरेशन सीक्वेंसिंग (NGS), अत्याधुनिक बायोइन्फ़ॉर्मेटिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग का एक साथ उपयोग करते हुए धूम्रपान करने वाले लोगों में कैंसर के पूर्वानुमानी और आरंभिक-अवस्था के बायोमार्कर्स की पहचान करेगी. इस प्रोजेक्ट में ग़ैर-पारसी धूम्रपान करने वाले और नहीं करने वाले भारतीय व अन्य जनसमूहों के नमूने भी उपयोग में लाए जाएंगे ताकि उक्त आंकड़ों के पीछे के साक्ष्य के बारे में और गहरी जानकारी हासिल की जा सके. बता दें कि अपने ही समुदाय में विवाह करने वाले पारसी लोग अपनी लंबी उम्र और फेफड़ों, सिर, गर्दन और खाने की नली के कैंसर के कम मामलों के लिए जाने जाते हैं. हालांकि पारसी समुदाय में पार्किन्सन और अल्ज़ाइमर रोग, हृदयवाहिकीय रोग, स्तन और पौरुष ग्रंथि के कैंसर, पुरुषों और स्त्रियों में प्रजनन शक्ति की कमी के मामले अधिक देखने को मिलते रहते हैं.
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Avesthagen के संस्थापक और अध्यक्ष Dr. Villoo Morawala-Patell का कहना है कि भारत में तंबाकू के कारण हर साल दस लाख से भी अधिक लोगों की मौत हो जाती है और इस समय धूम्रपान-संबंधी रोगों के आरंभिक बायोमार्कर्स की पहचान में मदद करने के लिए उपलब्ध शोध सीमित है. हमारा मानना है कि हमारा अध्ययन ऐसे नए किस्म के बायोमार्कर्स की पहचान करेगा जिन्हें फेफड़ों के और अन्य कैंसर की अधिक संभावना वाले व्यक्तियों में पूर्वानुमानी डाइग्नोस्टिक्स के रूप में उपयोग किया जा सकेगा.
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Foundation for a Smoke-Free World के अध्यक्ष Dr. Derek Yach के मुताबिक Avesthagen के अंदर कैंसर का पता लगाने के हमारे तरीके को पूरी तरह बदल डालने का सामर्थ्य है. इसके अलावा उनके शोध परिणामों से पार्किन्सन रोग और ऐसे अन्य कैंसर जो धूम्रपान से संबंधित न होने के कारण पारसी लोगों में आम हैं, के कारणों के बारे में भी महत्वपूर्ण गहन जानकारी मिल सकती है.
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो