कोविड-19 (COVID-19) महामारी के खात्मे के हाल-फिलहाल दो ही रास्ते नजर आते हैं. पहला, हर्ड इम्यूनिटी (Herd Immunity) यानी अधिसंख्य आबादी कोरोना संक्रमित हो जाए और इसके प्रति प्रतिरोधक (Immunity Power) क्षमता विकसित कर ले या फिर जल्द से जल्द प्रभावी कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) मिल जाए. दोनों ही अलग-अलग मसले हैं, जिनके साथ तमाम तरह के नियम-शर्ते लागू होती हैं. अगर वैक्सीन की बात करें तो यह कतई व्यावहारिक नहीं है कि दुनिया की 8 अरब की आबादी को वैक्सीन लगाई जा सके. इसी तरह हर्ड इम्यूनिटी के लिए आबादी कितनी हो, इसको लेकर भी अलग-अलग मत हैं.
70 से 75 फीसदी प्रभावी वैक्सीन भी कारगर
अगर वैक्सीन की बात करें तो जिस तरह से कोविड-19 का वायरस देश-काल-खंड के हिसाब से म्यूटेट कर रहा है, ऐसे में 100 फीसदी प्रभावी वैक्सीन की उम्मीद करना बेमानी है. इस कड़ी में अमेरिका के संक्रमित बीमारियों के विशेषज्ञ डॉ एंथोनी फौशी की बात महत्वपूर्ण हो जाती है कि 70 से 75 फीसदी प्रभावी वैक्सीन भी अगर मिल जाती है, तो इसे इंसानी सभ्यता के लिहाज से सौभाग्य ही माना जाएगा. उस पर समग्र आबादी का टीकाकरण अपने आप में एक बड़ी चुनौती होगी. बड़े तो छोड़िए छोटे देशों के लिए भी पूरी आबादी को वैक्सीन देना आसान नहीं होगा.
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भारत के लिए कहीं बड़ी चुनौती
अब अगर 1 अरब 30 करोड़ की आबादी वाले भारत देश की बात करें, जहां अधिसंख्य आबादी गांवों में निवास करती है, वहां तो सभी के वैक्सीन लगाना और भी बड़ी चुनौती होगी. सभी को वैक्सीन लगाने में महीने नहीं कई साल लग सकते हैं. ऐसे यह सवाल सिर उठाता है कि कोरोना वैक्सीन आखिर सबसे पहले किसे लगाई जाए और क्यों? यह एक ऐसा सवाल है जिसका सामाजिक, राष्ट्रीय और स्वास्थ के लिहाज से जवाब आसान नहीं होगा.
किस देश को कितनी वैक्सीन
सबसे बड़ी बात तो यही है कि अभी यही तय नहीं है कि कोरोना को प्रभावहीन करने वाली वैक्सीन आखिर मिलेगी कब तक... एकबारगी मान लेते हैं कि अगले साल अप्रैल तक दुनिया को कोरोना वैक्सीन मिल जाती है. ऐसे में जो भी कंपनी या प्रयोगशाला उसे तैयार करेगी, उसका संबंधित सरकार से अनुबंध तय करेगा कि 10 करोड़ वैक्सीन की पहली खेप किस देश को मिलेगी. यहां यह भूलना नहीं चाहिए कि अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे आधुनिक देशों ने ऐसी किसी भी उपलब्धि की आस में पहले से ही प्रमुख वैक्सीन उत्पादक कंपनियों और लैब्स के साथ डील कर रखी है.
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'वैक्सीन राष्ट्रवाद' पर डब्ल्यूएचओ की चेतावनी
हालांकि इस कड़ी में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी 'वैक्सीन राष्ट्रवाद' को लेकर पहले से ही चेतावनी जारी कर रखी है. खासकर वैश्विक समुदाय के समग्र स्वास्थ्य के लिहाज से यह चेतावनी खासी महत्वपूर्ण साबित हो जाती है. डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रॉस अधोनम घेब्रेसियस ने इसी सप्ताह कहा था कि वैश्विक स्तर पर वैक्सीन की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करना प्रत्येक देश के राष्ट्रीय हित के अनुकूल होना चाहिए. इसके बावजूद लगभग सभी देशों में इसको लेकर भारी अनिश्चितता है कि वैक्सीन की किस तरह आपूर्ति की जाएगी.
अमेरिका के लिए भी न भूतो न भविष्यति वाली स्थिति
अमेरिका का ही उदाहरण लें तो उसकी आबादी के टीकाकरण के लिए जिस तरह की योजना और लॉजिस्टिक्स एक ऐसा प्रयास होगा जो अब तक के इतिहास में इसके पहले कभी भी अमल में नहीं लाया गया होगा. ऐसे में यह रणनीति तमाम देशों के लिए भी बराबर से लागू होगी, लेकिन भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश के लिए एक साथ कई मोर्चों पर काम करने की जरूरत होगी.
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भारत में पहले वैक्सीन इन्हें लगे
भारत में पुलिस सेवा, नगर निगम कर्मी, डॉक्टर और चिकित्सा जगत से जुड़े लोगों को सबसे पहले वैक्सीन देनी होगी. अग्रिम मोर्चे पर कोरोना से जंग लड़ रहे इन लोगों का स्वस्थ रहना सामाजिक लिहाज से पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. इसी तरह वृद्ध लोगों को भी शीर्ष प्राथमिकता में रखना होगा, क्योंकि उनके संक्रमित होने का जोखिम सबसे ज्यादा है. हालांकि ऐसी किसी वैक्सीन के परीक्षण में इस बात का खास खयाल रखना होगा कि परीक्षण के दौरान इस बात को भी जांचा जाए कि वृद्ध आबादी पर वैक्सीन का कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़े.
हर्ड इम्यूनिटी भी लक्ष्य हो
इसके बाद उन खास इलाकों को वैक्सीन के दायरे में लाना होगा जहां तेज गति से कोरोना संक्रमण फैल रहा है. इस कड़ी में हर्ड इम्यूनिटी का लक्ष्य हासिल करने के लिए आबादी के एक खास प्रतिशत को तय कर उन्हें भी वैक्सीन देना श्रेयस्कर रहेगा. भारत जैसे देश के लिए वैक्सीन की उपलब्धता और सबकी जेब वाली कीमतें एक ऐसा मसला है, जिसे सिर्फ सरकार ही सुनिश्चित कर सकती है. कुल मिलाकर वैक्सीन मिलने के बाद उसका इस्तेमाल एक ऐसी रणनीति के तहत होना चाहिए जिसका अधिसंख्य आबादी लंबे समय तक फायदा उठा सके.