दिल्ली (Delhi) में हर तीन स्कूली बच्चों में से एक को अस्थमा और सांस देने में परेशानी की शिकायत है. वहीं दक्षिण भारत के शहर कोट्टायम और मैसूर जैसे शहरों में रहने वाले 23 फीसद बच्चों को फेफड़ों से संबंधित समस्याएं हैं, जबकि यहां दिल्ली के मुकाबले प्रदूषण (Pollution) काफी कम है. यह अध्ययन लंग केयर फाउंडेशन और पल्मोकेयर रिसर्च एंड एजुकेशन फाउंडेशन ने किया, जिसकी रिपोर्ट लंग इंडिया जर्नल में प्रकाशित हुई है. रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि बच्चे तेजी से दमे के शिकार हो रहे हैं.
संस्था की ओर से 3157 छोटे स्कूली बच्चों का परीक्षण किया गया. इस सर्वे में यह पता लगाया गया कि उनके फेफड़ों की सेहत कैसी है. सर्वे में बच्चों को एक प्रश्नावली दी गई, उन्हें स्पायरोमेट्री से भी गुजारा गया. इस टेस्ट को फेफड़ों की कार्यप्रणाली के आकलन के सबसे उच्च मानकों वाला टेस्ट माना जाता है. इसे तकनीशियन और नर्सों के द्वारा कराया जाता है. सर्वे में सामने आया कि दिल्ली में 52.8 फीसदी बच्चों ने छींक आने, 44.9 फीसदी ने आंखों में खुजली के साथ पानी आने, 38.4 फीसदी ने खांसी, 33 फीसदी ने खुजली वाले निशान पड़ने, 31.5 फीसदी ने ठीक से सांस नहीं ले पाने, 11.2 फीसदी ने सीने में जकड़न और 8.75 फीसदी ने एक्जींमा की शिकायत से ग्रस्त दिखे. वहीं कोट्टायम और मैसूर में 39.3 फीसदी ने छींक, 28.8 फीसदी ने आंखों में खुजली के साथ पानी, 18.9 फीसदी ने खांसी, 12.1 फीसदी ने खुजली वाले निशान पड़ने, 10.8 फीसदी ने ठीक से सांस नहीं ले पाने, 4.7 फीसदी ने सीने में जकड़न और 1.8 फीसदी ने एक्जीमा की शिकायत की.
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लड़कियों के मुकाबले लड़कों में खतरा ज्यादा
सर्वे में दिल्ली के 23.95 फीसदी बच्चों में स्पायरोमेट्री पर सांस लेने में रुकावट या दमा की शिकायत पाई गई. वहीं, कोट्टायम और मैसूर के 22.6 प्रतिशत बच्चों में इस तरह की समस्याएं पाई गई. यहां गौर करने वाली बात यह है कि यह अंतर तब है जब कोट्टायम और मसूर में बचपन से ही दमे के लिए अनुवांशिक कारण तथा घर में किसी के धूम्रपान करने जैसे दो महत्वपूर्ण कारक भी जुड़े हुए हैं. स्पायरोमेट्री पर लड़कों में लड़कियों के मुकाबले दमे का प्रसार 2 गुना अधिक पाया गया. दिल्ली में 19.9 फीसदी लड़कियों के मुकाबले 37.2 फीसदी लड़कों में वायु प्रवाह में रुकावट या अस्थमा का प्रसार देखा गया.
85 फीसदी को पता नहीं कि उन्हें दमा है
सीएसआइआर इंस्टीट्यूट ऑफ जिनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी, नई दिल्ली के निदेशक डॉ. अनुराग अग्रवाल ने कहा कि अध्ययन से यह जाहिर होता है कि दिल्ली के जिन बच्चों में दमे का प्रसार पाया गया है उनमें से 85 फीसदी को यह नहीं पता कि वह दमे के शिकार हैं. उनमें से 3 फीसदी से भी कम को सही इलाज मिल रहा है.