भारत में कोविड संक्रमण को लेकर स्थिति तेजी से बिगड़ती जा रही है. कोरोना के बढ़ते मामलों में देश की रफ्तार कई गुना तेज हो गई है. देश में कोरोना के नए मामलों के आंकड़ों से लोगों के अंदर भी खौफ दिखने लगा है. बुजुर्गों और बच्चों के लिए भी चिंताएं फिर बढ़ गई है. लेकिन इस बीच एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि सीनियर सीटीजन को दूसरी बार संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है. शोध के मुताबिक, कोविड से संक्रमित हो चुके बुजुर्गों को बहुत कर कम से कम 6 महीनों तक सुरक्षा मिलती है, मगर दोबारा संक्रमण के प्रति बुजुर्ग ज्यादा संवेदनशील हैं.
यह भी पढ़ें : महाराष्ट्र में कोरोना का कहर जारी, बीते 24 घंटों में आए 49,447 केस, 277 की मौत
इस शोध को बुधवार को लांसेट मेडिकल पत्रिका में प्रकाशित किया गया है. शोध में पता चला है कि पहली बार कोरोना का मात देने के बाद बुजुर्गों को दोबारा कोविड-19 की चपेट में आने का ज्यादा खतरा है. रिसर्च के अनुसार, बीते साल डेनमार्क में PCR टेस्ट नतीजों के अध्ययन में पता चला कि 65 साल से कम उम्र के जो लोग पहले कोरोना से संक्रमित रह चुके थे, उनको संक्रमण की दोबारा चपेट में आने से करीब 80 फीसदी सुरक्षा मिली. मगर 65 साल और उससे ऊपर के लोगों को मिलने वाली सुरक्षा 47 फीसदी दर्ज की गई.
मसलन, शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि पहले कोरोना का हरा चुके 65 साल से ज्यादा उम्र लोगों का टीकाकरण किया जाना चाहिए, क्योंकि प्राकृतिक सुरक्षा पर भरोसा नहीं किया जा सकता. शोधकर्ताओं की मानें तो संक्रमण के हमले से पहली बार मिलने वाली प्राकृतिक सुरक्षा पर भरोसा नहीं किया जा सकता है और वो भी खासकर उन बुजुर्गों के लिए, जिनको गंभीर बीमारी का सबसे अधिक जोखिम होता है.
यह भी पढ़ें : कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर की रफ्तार तीन गुनी, अप्रैल-मई हो सकता है भयावह
स्टेटेन्स सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ कोपेनहेगन के वरिष्ठ शोधकर्ता स्टीन एथेलबर्ग कहते हैं, 'नतीजों से स्पष्ट होता है कि कोरोना के वक्त बुजुर्गों को सुरक्षित करने के लिए नीतियों को लागू करना महत्वपूर्ण है. शोध से यह भी पता चलता है कि टीकाकरण की व्यापक रणनीतियों और लॉकडाउन पाबंदियों में ढील की नीतियों पर फोकस हो.'