दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण (Pollution In Delhi-NCR) का आलम ये है कि पिछले 15 दिनों में 67 फीसद परिवारों में से कोई न कोई व्यक्ति अस्पताल का चक्कर जरूर लगाया है. आंखों में जलन, गले में खराश, सीने में भारीपन, सांस फूलना और खांसी की शिकायत आम है. खतरनाक स्तर पर पहुंच चुके प्रदूषण (Pollution) से सबसे ज्यादा खतरा बुजुर्गों और बच्चों को है. प्रदूषण (Pollution) की वजह से बुजुर्गों को दिल, मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर और सांस की दिक्कतें अधिक होती हैं. यही नहीं उन्हें दिल का दौरा भी पड़ सकता है. प्रदूषण सिर के बाल से लेकर पैरों के नाखून तक को प्रभावित करता है.
पर्यावरण थिंक टैंक सीएसई के स्टेट ऑफ इंडियाज इन्वायरन्मेंट (SOI) रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषित हवा के कारण भारत में 10,000 बच्चों में से औसतन 8.5 बच्चे पांच साल का होने से पहले मर जाते हैं. वहीं चिकित्सकों के मुताबिक 28 वर्ष की उम्र के लोगों में भी चौथे चरण का कैंसर देखने को मिल रहा है, वह भी ऐसे लोगों में जो कभी धूम्रपान नहीं करते. 1988 में 90% फेफड़े के कैंसर धूम्रपान करने वालों में होते थे. अब गैर-धूम्रपान वालों में 50% मामले देखे जा रहे हैं. इसकी वजह प्रदूषण है.
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वहीं गर्भवती महिलाएं जब प्रदूषित हवा में सांस लेती हैं तो उन्हें और गर्भस्थ शिशु को कई सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. कई महिलाओं का समय पूर्व जहां प्रसव हो जाता हैं वहीं बच्चे में जन्म से ही शारीरिक या मानसिक दोष की आशंका बढ़ जाती है, यहां तक उसकी मृत्यु भी हो सकती है.
प्रदूषण का दुष्प्रभाव
- पार्टिकुलेट मैटर - पीएम 2.5 और इससे छोटे आकार के प्रदूषण कण फेफड़ों से गुजर कर आसानी से शरीर की कोशिकाओं में घुस जाते हैं.
- प्रदूषण से बाल भी गिरने लगते हैं और इनकी चमक खोने लगती है.
- त्वचा पर दाग-धब्बे हो जाते हैं और वह रूखी व बेजान लगती है. प्रदूषण से चेहरे की चमक खोने लग जाती है. एग्जिमा, त्वचा की एलर्जी, उम्र से पहले झुर्रियों के साथ त्वचा के कैंसर तक की आशंका बढ़ जाती है.
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- प्रदूषण से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियां होती हैं. सांस लेने वाली नली में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. सबसे बुरा असर अस्थमा के मरीजों पर होता है.
- सांस लेने के दौरान पीएम 2.5 कण सांस की नली में पहुंच जाते हैं. इससे नली में सूजन आने लगती है.
- दिल के दौरे का खतरा भी बढ़ जाता है. यह दिल की धमनियों में बाधा के लिए जिम्मेदार है.
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- प्रदूषण से जोड़ों का दर्द बढ़ जाता है. वहीं यह आंखों में सूखापन , एलर्जी, दर्द के साथ यह आंसू को एसिडिक बना देता है.
- वायु प्रदूषण के महीन कण फेफड़े के जरिए खून में पहुंच जाते हैं. इससे दिमाग में रक्त की आपूर्ति कम हो सकती है. यह अल्जाइमर्स के खतरे को बढ़ा देता है.
- लंबे समय तक पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड से संपर्क से डिमेंशिया का खतरा