दिल (Heart) के मरीजों के लिए खुशखबरी है. आने वाले समय में अगर आपका दिल (Heart) काम करने के लायक नहीं रहा तो आपका पूरा का पूरा दिल (Heart) बदल दिया जाएगा. इसके लिए किसी मनुष्य के दिल (Heart) की जरूरत नहीं पड़ेगी, बल्कि प्रिंटर से निकला दिल (Heart) आपके सीने में धड़केगा. दरअसल अमेरिकी वैज्ञानिकों ने 3-डी बायो-प्रिंटर और अपनी नई तकनीक के जरिए जीवित कोशिकाओं (Cells) और प्रोटीन से मानव दिल (Heart) के विभिन्न हिस्से बनाने में सफलता पाई है.
इस सफलता के बाद वैज्ञानिकों ने यह भी दावा किया है कि भविष्य में पूरे मानव दिल (Heart) का निर्माण इस तकनीक के जरिये हो सकेगा. यह दावा अमेरिका के कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय के साइंस पत्रिका में प्रकाशित किया गया है. पत्रिका के सह-लेखक एडम फेनबर्ग ने कहा है, ' हमने कोलेजन से 3-डी प्रिंट के जरिये दिल (Heart) का वॉल्व बनाया जो काम करता है. कोलेजन प्रोटीन वह तत्व है जो शरीर की लगभग हर अंग व कोशिका के ढांचे में पाया जाता है.'
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बता दें दिल (Heart) के साथ-साथ, मानव शरीर के सभी अंग कुछ विशेष कोशिकाओं (Cells) से बने होते हैं. इन्हें प्रोटीन का एक बायोलॉजिक ढांचा बांध कर रखता है, जिसे एक्सट्रो सैल्यूलर मैट्रिक्स (ECM) कहा जाता है. इनमें कोलेजन प्रमुख रूप से शामिल है. ECM ही कोशिकाओं (Cells) को ऐसे बायोकेमिकल संदेश देता है, जिससे कोशिकाएं विभिन्न अंगों को उनका निर्धारित काम करवाती हैं.
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दिल (Heart) का एमआरआई कर उसे जीवित कोशिकाओं (Cells) और कोलेजन से बनाने पर लिजलिजा अंग बनता है जो उपयोगी नहीं होता. इस पेपर में नई तकनीक ‘फ्रीफॉर्म रिवर्सिबल एम्बेडिंग ऑफ सस्पेंडेड हाइड्रोजेल्स’ (FRESH) रखी गई.
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इसमें 3डी प्रिटिंग के समय कोलेजन को परत दर परत जमाया जाता है. हर परत के बीच जेल की सतह लगाई जाती है. जेल सामान्य वातावरण के तापमान में पिघलकर ढांचे से निकल जाता है. कोलेजन बिना किसी नुकसान ठोस दिल (Heart) का रूप ले लेता है.
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इसी तकनीक से कई अन्य तत्वों को भी 3डी प्रिंट में ढाला जा सकता है. विश्वविद्यालय में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के प्रो. एडम फीनबर्ग के अनुसार फ्रेश तकनीक पर कुछ और अध्ययन होने हैं. यह तकनीक घावों को भरने से लेकर बेकार हो चुके अंग बनाने में काम आ सकती है.
HIGHLIGHTS
- 3-डी बायो-प्रिंटर और अपनी नई तकनीक के जरिए बने मानव दिल (Heart) के विभिन्न हिस्से
- भारत में करीब 50 हजार मरीजों को हृदय प्रत्यारोपण की जरूरत है
- साल में 10 से 15 ही प्रत्यारोपण हो रहे हैं. कृत्रिम अंग हालात सुधार सकते हैं.
Source : News Nation Bureau