भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसा नैनोपार्टिकल (अतिसूक्ष्म कण) तैयार किया है जिससे रुमेटॉयड अर्थराइटिस (गठिया) की तीव्रता को कम करने में मदद मिलेगी. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की एक स्वायत्तशासी संस्था नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) के वैज्ञानिकों ने काइटोसन के संयोग से नैनोपार्टिकल तैयार किया है और इसे जिंक ग्लूकोनेट के साथ मिलाया है. उन्होंने इससे गठिया की तीव्रता को कम करने में मदद मिलने का दावा किया है.
यह भी पढ़ें : मानसून सीजन में अपने परिवार का ऐसे रखें ख्याल, नहीं पड़ेंगे बीमार, ना लगाने होंगे हॉस्पिटल के चक्कर
काइटोसन एक बायोकम्पैटेबल बायोडिग्रेडेबल प्राकृतिक पोलीसैकेराइड (एक प्रकार का शर्करा) होता है. यह शेल फिश एवं क्रस्टासीयन के बाह्य कंकाल से प्राप्त होने वाले बायोपॉलीमर्स में से एक है. इसका उपयोग औषधियों में किया जाता है. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के बयान के अनुसार, जिंक तत्व सामान्य हड्डी होमियोस्टैसिस को बनाये रखने के लिए अहम होता है और ऐसा बताया जाता है कि इसका लेवल गठिया रोगियों एवं अर्थराइटिस-प्रेरित पशुओं में कम हो जाता है.
डीएसटी के सचिव प्रो. आशुतोष शर्मा के अनुसार, ‘‘नैनो जैव प्रौद्योगिकी उन समस्याओं के लिए कई प्रभावी समाधान उपलब्ध कराती है जिन्हें पारंपरिक औषधियां अक्सर प्रभावी ढंग से हल करने में सक्षम नहीं हो पातीं.’’ उन्होंने कहा कि आईएनएसटी, मोहाली में विकसित जिंक ग्लूकोनेट युक्त काइटोसन नैनोपार्टिकल्स का मिश्रण रुमेटॉयड अर्थराइटिस के लिए उत्कृष्ट उपचार का एक रचनात्मक उदाहरण है.
यह भी पढ़ें : बारिश में भीगने से आपके बच्चों को हो सकता है निमोनिया, इन 5 चीजों के उपयोग से कर सकते हैं बचाव
बयान के अनुसार, वैज्ञानिकों ने नैनोपार्टिकल्स के विभिन्न फिजियोकैमिकल गुणों की जांच की और फिर विस्टर चूहों में कोलाजेन प्रेरित अर्थराइटिस के खिलाफ गठिया रोधी क्षमता की जांच की गई. उन्होंने पाया कि जिंक ग्लूकोनेट एवं जिंक ग्लूकोनेट युक्त काइटोसन नैनोपार्टिकल्स दोनों के साथ चूहों के उपचार से जोड़ में सूजन आदि में कमी आई और अर्थराइटिस की तीव्रता कम हुई . इस परीक्षण में जिंक ग्लुकोनेट युक्त चिटोसन नैनोपार्टिकल्स ने उच्च प्रभावोत्पादकता प्रदर्शित की.
Source : Bhasha