तनाव, चिंता, डिप्रेशन, ख़ुशी, या फिर एंजाइटी हर तरह का इमोशन पुरुष हो या महिला दोनों में ही होता है. सदियों से एक बात जो लोग अक्सर कहते हैं कि पुरुषों को रोना नहीं आता. महिलाओं में पुरुष के मुक़ाबले ज्यादा इमोशंस होते हैं. हालांकि ये बात सच है कि महिलों में पुरुषों के मुक़ाबले ज्यादा इमोशंस देखने को मिलते है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि पुरुषों में इमोशंस होते नहीं. अपने इमोशन्स और स्ट्रेस की वजहों से पुरुष खुलकर बात नहीं कर पाते क्योंकि आज भी समाज में ये एक टैबू (Taboo) की तरह है.
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कुछ हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक कोरोना महामारी के दौर में महिलाओं के साथ पुरुषों में ऐसे मेंटल हेल्थ( Mental Health) इशू देखने को मिले, जिसमें वे अंदर ही अंदर घुटते रहे और अपनी परेशानियों को दूसरों से शेयर करने से बचते रहे. जिसके कारण वो डिप्रेशन, अकेलापन जैसी चीज़ों का शिकार हुए हैं. स्ट्रेस (Stress) और डिप्रेशन (Depression) के चलते जब वह अपनी बात किसी से कह नहीं पाए तो उन्होंने सुसाइड जैसा कदम उठाना आसान समझा जो कि सरासर गलत है. बात जहां पुरुषों के मेन्टल हेल्थ की आती है तब हर कोई इसपर बात नहीं करना चाहता. क्योंकि आज भी समाज में पुरुषों के लिए रोना एक कमज़ोर आदमी की निशानी माना जाता है. लेकिन अब यह एक ग्लोबल मुद्दा बन गया है. चलिए जानते हैं कुछ ऐसे मिथ जो पुरुषों पर सदियों से थोपी जा रही है. लेकिन सच्चाई कुछ और ही है.
पुरुष को कभी दर्द नहीं होता
हमेशा से लोगों को और लड़कों को यह बताया गया है कि पुरुषों को दर्द रोना नहीं आता. हर इमोशनल बात पर रोती लड़कियां हैं. जबकि यह गलत है. जबकि सच्चाई कुछ अलग है. रोना किसी कमज़ोरी की निशानी नहीं है बल्कि अपने को फ्री करना और अपने को एक स्वस्थ और मानसिक तनाव से बाहर निकालने का तरीका है. लेकिन जब इंसान नहीं रोता है और नेचर के विपरीत जाकर तनाव के बावजूद खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश करता है तो दरअसल वह अंदर कठोर बनता जाता है. ऐसे में पुरुषों के लिए भी जरूरी है कि जब भी ऐसी स्थिति आए तो अपनी फीलिंग्स को कहीं शेयर करें. या मैडिटेशन का सहारा लें जिससे आपका मानसिक तनाव शांत और खत्म होगा.
पुरुष इमोशनल नहीं होते
हर इंसान की तरह पुरुष भी इमोशनल हो सकता है. यह कहीं से कमजोरी का लक्षण नहीं होता है. कुछ हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक पुरुष भी इमोशनल हो सकता है. और जब चाहे जैसा चाहे अपने इमोशंस फीलिंग्स को बाहर निकाल सकता है. चाहे वो रो कर हो या फिर किसी से बात करके. इसलिए ये कहना गलत है कि पुरुष इमोशनल नहीं होते.
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मेंटल सपोर्ट की नहीं है जरूरत
लोगों में आम धारणा है कि पुरुषों को मेंटल सपोर्ट की जरूरत नहीं होती क्योंकि उनको कभी इसकी आवश्यकता नहीं पड़ी और न ही पड़ेगी जो कि गलत है. हर इंसान को जिंदगी में किसी न किसी के सपोर्ट की जरूरत पड़ती है. फिर चाहे वो पुरुष हो या महिला. पुरुषों को भी मेंटल सपोर्ट की जरूरत पड़ती है. अगर आप भी यही सोचकर किसी से अपने दिल की बात नहीं कह पा रहे हैं तो ऐसा न करें बल्कि किसी दोस्त या शांत दिमाग से अपने किइस करीबी से बात करें. मेन्टल सपोर्ट मांगना कमज़ोरी नहीं बल्कि समझदारी और ताकत का सबूत है.
गुस्से में होते है पुरुष
गुस्सा आना किसी के लिए भी एक आम बात है. अगर इंसान परेशान है बेचैन है तो उसको गुस्सा आएगा. कोई अगर अपने दिल की बात नहीं कह पारा है या फिर कोई ऐसी चीज़ जो उसे अंदर से खाई जा रही है इन सब के चलते इंसान गुस्सैल हो जाता है. बेहतर है कि इस स्थिति में आप योग या मैडिटेशन करें. या फिर ब्रेक लेकर अपनी पसंदीदा जगह जाकर घूमें और शांत दिमाग से सोचें. ध्यान रहे चाहे महिला हो या पुरुष ब्रेक लेना गलत नहीं है और न ही रो कर अपने दिल की बात या परेशानी को बाहर निकालना.
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Source : News Nation Bureau