मस्कुलर डिस्ट्रॉफी यह एक अनुवांशिक बीमारी है, जो खासतौर से बच्चों में होती है. इस बीमारी की वजह से किशोर होते-होते बच्चा पूरी तरह विकलांग हो जाता है. ऐसी स्थिति में वह न तो चल सकता है और न बैठ सकता है. यह विकृति मांसपेशियों की कोशिकाओं और ऊत्तकों के मृत होने का परिणाम होती है, जिससे मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं. जिससे बच्चे के लिए सामान्य रूप से चलना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में बच्चे उठने के लिए अपने हाथों का सहारा लेते हैं. बारह साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते बच्चा पूरी तरह विकलांग हो जाता है.
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के बारें में योग गुरु स्वामी रामदेव ने भी कई महत्वपूर्ण बातें बताई. उन्होंने कहा, 'अगर मस्कुलर डिस्ट्रॉफी प्रारंभिक अवस्था में रहती है तो इसे काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है. लेकिन इसका असर अगर बहुत ज्यादा हो जाता है तो उस समय हाथ, पैर और पूरा शरीर एक लौथड़े की तरह हो जाता है. पूरा शरीर जवाब देना बंद कर देती है. उस समय उपचार मुश्किल हो जाता है.'
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का कोई संतोषजनक उपचार अभी तक नहीं मिल पाया है. वैज्ञानिक इस बीमारी के लिए जिम्मेदार डिफेक्टिव जीन्स की खोज में लगे है. हालांकि शुरुआती दौर में इस रोग की पहचान हो जाने पर इसके इलाज में काफी मददगार हो सकती है.
बाबा रामदेव ने मस्कुलर डिस्ट्रॉफी को नियंत्रण करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातें बताई है-
1. मेधावटी और बादाम रोगन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी में लाभ पहुंचाता है.
2. मस्कुलर डिस्ट्रॉफी को कंट्रोल करने के लिए Giloy का इस्तेमाल करें.
3. Giloy का काढ़ा या गोली का उपयोग कर सकते है.
4. Ashwagandha और Shatavar का चुर्ण और स्वेत मुसली का इस्तेमाल करें.
5. अश्वगंधा, शतावर और स्वेत मुसली (Swet musli) का पाउडर मिलाकर 2-3 ग्राम (आवश्कता अनुसार) सुबह-शाम पिएं.
6. Ashvashila कैप्सूल को Ashwagandha और शिलाजित भी नर्वस सिस्टम को अच्छा करती है.
7. Giloy Ghanvati और chandraprabha vati की गोलियां भी लाभ पहुंचाती है.
रामदेव ने कहा कि यहीं एक ऐसी बीमारी बची है बाकी हमने तो HIV से लेकर कैंसर समेत सबका इलाज खोज लिया है. उन्होंने कहा कि मस्कुलर डिस्ट्रॅाफी प्रारंभिक अवस्था में हो तो बच्चा ठीक भी हो सकता है.
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के लक्षण-
- ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी सिर्फ लड़कों में ही उजागर होती है और लड़कियां, जीन विकृति होने पर कैरियर (वाहक) का कार्य करती हैं या अपनी संतान को भविष्य में ये बीमारी दे सकती हैं, जबकि लड़कियों में किसी प्रकार के लक्षण उत्पन्न नहीं होते हैं.
- ज्यादातर बच्चों में 2 से 5 वर्ष की आयु में ही पैरों में कमजोरी शुरू हो जाती है.
- दौड़ते समय गिर जाना.
- जल्दी थक जाना.
- पैरों की मांसपेशियों का फूल जाना.
- जमीन से उठते समय घुटने पर हाथ रखना या न उठ पाना.
Source : News Nation Bureau