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Thalassemia: क्या होता है थैलेसीमिया, जानें इसके कारण, लक्षण और इलाज

Thalassemia: थैलेसीमिया एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्या है, इसमे रक्त में हेमोग्लोबिन के अनियमितता के कारण होता है, आइए जानें क्या इसके लक्षण

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Ritika Shree
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symptoms of thalassemia

symptoms of thalassemia ( Photo Credit : social media)

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Thalassemia: थैलेसीमिया एक जन्मजात रक्त की समस्या है जो हेमोग्लोबिन की अधिकता या अभाव के कारण होती है. हेमोग्लोबिन रक्त में ऑक्सीजन को ले जाने के लिए जिम्मेदार होता है. यह रोग उत्पादन और उपयोग के दोनों के लिए हेमोग्लोबिन के मात्रा में कमी के कारण होता है. थैलेसीमिया के कई प्रकार होते हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख हैं अल्फा-थैलेसीमिया और बीटा-थैलेसीमिया. यह रोग जीवनदायी होता है और बच्चों में प्रारंभिक चरण में पहचाना जा सकता है. लेकिन अनुकूल उपचार, जैसे कि रक्त संग्रहण, ट्रांसफ्यूजन, और अन्य चिकित्सा उपचार से इसका प्रबंधन किया जा सकता है. थैलेसीमिया रोग एक अधिक गंभीर समस्या हो सकती है, लेकिन सही चिकित्सा द्वारा प्रबंधित किया जा सकता है. इसके लिए रोगी को नियमित चिकित्सा जाँच और डॉक्टर की सलाह का पालन करना चाहिए.

थैलेसीमिया के कारण

थैलेसीमिया ज्यादातर विकास के प्रारंभिक चरण में देरी के कारण होता है और यह रोग आनुवंशिक प्रवृत्ति के कारण होता है. जब किसी व्यक्ति के गर्भवती माता या जन्म से पहले जेनेटिक डिज़ाइन में विपरीतता उत्पन्न होती है, तो थैलेसीमिया का जन्म होता है. यह रोग उत्पादन और उपयोग के दोनों के लिए हेमोग्लोबिन के मात्रा में कमी के कारण होता है. थैलेसीमिया जन्म लेने वाले बच्चों में प्रारंभिक चरण में पहचाना जा सकता है, लेकिन कई बार यह रोग संदिग्ध नहीं होता है और बाद में पता चलता है. 2020 में आए आंकड़ों की माने तो भारत में करीब 4-5 करोड़ लोगों को थैलेसीमिया है, और हर साल देश में थैलेसीमिया के लगभग 10 लाख नए मामले सामने आते है.

थैलेसीमिया के लक्षण

अनीमिया: थैलेसीमिया के रोगी में अनीमिया के लक्षण हो सकते हैं, जैसे कि थकान, कमजोरी, लालिमा, चक्कर आना, और सांस लेने में कठिनाई.

वृद्धि की लक्षण: रक्त की कमी के कारण रोगी के शरीर में वृद्धि की लक्षण आ सकती है, जैसे कि मस्तिष्क के विकास में कमी, हड्डियों में कमजोरी, और अन्य स्थायी संरचनाओं में अंतर.

त्वचा का पीलापन: थैलेसीमिया के रोगी की त्वचा का रंग पीला पड़ सकता है, ये बीलीरुबिन की ऊंची मात्रा के कारण हो सकता है.

हड्डियों की बढ़ी हुई या वृद्धि: बच्चों में, अत्यधिक रक्त की कमी के कारण हड्डियाँ अविकसित या खराब विकसित हो सकती हैं.

सांस की समस्याएं: थैलेसीमिया के रोगी में सांस की समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि अधिक सांस लेना या दिल की समस्याएं.

अत्यधिक पानी और तरलता: रक्त की कमी के कारण थैलेसीमिया के रोगी में पानी की अधिकता और तरलता हो सकती है.

किसी को थैलेसीमिया के लक्षण दिखाई दें, तो उन्हें तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए. थैलेसीमिया के समय पर पहचान और उपचार से बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है.

थैलेसीमिया का उपचार

रक्त संग्रहण (ट्रांसफ्यूजन): थैलेसीमिया के रोगी को नियमित रक्त संग्रहण (ट्रांसफ्यूजन) की जरूरत होती है ताकि उनके शरीर में हेमोग्लोबिन की आवश्यक मात्रा बनी रहे.

फोलिक एसिड सप्लीमेंटेशन: रक्त संग्रहण के बाद, फोलिक एसिड के सप्लीमेंट का उपयोग किया जाता है, जो रक्त के नए सेल्स के उत्पादन में मदद करता है.

थैलेसेमिया के ड्रग्स: कुछ दवाएं, जैसे कि ह्य्ड्रोक्सीयूरिया, डिफरिया-प्रायोटैक्टीन, और डेसफेराल आदि, थैलेसीमिया के उपचार में उपयोग की जाती हैं.

बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन: यह उपचार सबसे गंभीर होता है और इसमें अधिकांश केस में मरीज के शरीर में स्वस्थ बोन मैरो का ट्रांसप्लांटेशन किया जाता है.

जेनेटिक काउंसलिंग: जेनेटिक काउंसलिंग और टेस्टिंग के माध्यम से, थैलेसीमिया के संभावित पारिवारिक असरों का पता लगाया जा सकता है और इससे भविष्य के जन्मांतर को नियंत्रित किया जा सकता है.

यह उपाय एक्सपर्ट चिकित्सक या हेमेटोलॉजिस्ट द्वारा निर्धारित किए जाने चाहिए, और उपयोगकर्ता के रोग की गंभीरता और अन्य कारकों पर आधारित होने चाहिए. रोगी को नियमित चिकित्सा जाँच और डॉक्टर की सलाह का पालन करना चाहिए.

Source : News Nation Bureau

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