टूथपेस्ट, साबुन और डियो जैसी दैनिक उपयोग की चीजों में खतरनाक रसायन ट्राइक्लोसन की मौजूदगी का पता चला है. IIT हैदराबाद के बायोटेक्नोलॉजी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अनामिका भार्गव की अगुवाई में शोधार्थियों ने यह खुलासा किया है. ब्रिटेन के प्रमुख वैज्ञानिक जर्नल 'कीमोस्फेयर' में हाल ही में यह जानकारी प्रकाशित हुई थी. शोधार्थियों ने पाया कि स्वीकृत सीमा से 500 गुना कम जोड़ने पर ट्राइक्लोसन मानव तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है.
दरअसल, एंटी बैक्टीरियल और एंटी माइक्रोबियल एजेंट ट्राइक्लोसन मानव शरीर के तंत्रिका तंत्र को डैमेज करता है. 1960 के दशक में इसका इस्तेमाल केवल मेडिकल केयर प्रोडक्ट में ही होता था. हाल ही में अमेरिकी एफडीए (खाद्य एवं औषधि प्रशासन) ने ट्राइक्लोसन के के इस्तेमाल पर आंशिक प्रतिबंध भी लगाया था.
भारत की बात करें तो यहां अभी तक ट्राइक्लोसन आधारित उत्पादों के लिए कोई कानून नहीं बना है. शोधार्थियों का कहना है कि ट्राइक्लोसन को सूक्ष्म मात्रा में लिया जा सकता है, लेकिन रोजमर्रा के इस्तेमाल की वस्तुओं में इसकी मौजूदगी बेहद खतरनाक हो सकती है. मनुष्यों की तरह इम्युनिटी वाले जेब्राफिश पर यह शोध किया गया. डॉ. अनामिका ने बताया कि जेब्राफिश भ्रूण के तंत्रिका तंत्र पर ट्राइक्लोसन के प्रभावों की स्टडी की गई.
डॉ. अनामिका भार्गव का कहना है कि स्टडी से पता चलता है कि सूक्ष्म मात्रा में भी ट्राइक्लोसन न्यूरोट्रांसमिशन से संबंधित जीन और एंजाइमों को प्रभावित कर सकता है. इसके अलावा यह न्यूरॉन को भी प्रभावित कर सकता है. मानव ऊतकों और तरल पदार्थों में ट्राईक्लोसन की मौजूदगी से मानव के न्यूरो-व्यवहार में चेंजिंग आ सकती है.
Source : News Nation Bureau