बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में संदिग्ध अक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) जिसे चमकी बुखार भी कहा जा रहा है. बिहार के मुजफ्फरपुर में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण बच्चों की मरने की संख्या बढ़ती जा रही है. पिछले एक पखवाड़े में इंसेफेलाइटिस से मरने वाले बच्चों की संख्या 100 पार गई है. वहीं, कई बच्चे अस्पताल में भर्ती हैं. मौतों का यह आंकड़ा 2 जून के बाद का बताया जाता है. मोतिहारी में भी एईएस पीड़ित एक बच्चे को भर्ती कराया गया. इस सीजन में सोमवार (10 जून 2019) को स्थिति सबसे भयावह रही, जब 23 बच्चों की मौत हुई थी.
साल दर साल मौत का आंकड़ा
- 2018 में देश में कुल 13066 मामले 818 मौत , बिहार में 44 मौत , यूपी में 255
- 2017 में देश में कुल 15853 मामले 1351 मौत , बिहार में 65 मौत , यूपी में 747
- 2016 में देश में कुल 13327 मामले 1584 मौत , बिहार में 127 मौत ,यूपी में 694
- 2015 में देश में कुल 11584 मामले 1501 मौत ,बिहार में 102 मौत ,यूपी में 521 मौत
- 2014 में देश में कुल 12528 मामले 2012 मौत , बिहार में 357 मौत ,यूपी में 661 मौत
- 2013 में देश में कुल 8911 मामले 1475 मौत , बिहार में 143 मौत , यूपी में 656 मौत
पहली बार 1996 में मिले बीमारी के लक्षण
जानकारी के मुताबिक, सन 1996 में पहली बार इस लक्षण से पीड़ित बच्चे एसकेएमसीएच आए थे. 2000 के बाद यह बीमारी भयावह होने लगी और 2010 आते आते यह बीमारी राष्ट्रीय चिंता का विषय बन गई. क्योंकि न बीमारी समझ आ रही थी और न उसका इलाज.
सबसे पहले जापान में इस बीमारी का पता चला था
- 1870 में सबसे पहले जापान में इस बीमारी का पता चला था. इसी वजह से देश दुनिया में ये जापानी इन्सेफेलाइटिस के नाम से जाना जाने लगा.
- 1978 में पहली बार भारत में इसका मामला सामने आया. हर साल जुलाई से लेकर दिसंबर महीने तक छोटे-छोटे बच्चे इस घातक बीमारी के साए में जीते हैं.
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इसे देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों ने इस पर शोध कराना शुरू किया. एसकेएमसीएच के शिशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. गोपाल सहनी के मुताबिक, दिल्ली से लेकर अमेरिका तक की संस्थाओं ने महीनों यहां रहकर शोध कार्य किया, लेकिन कोई ठोस नतीजे पर नही पहुंच सकी.
इंसेफेलाइटिस को लेकर शोध
- इंसेफेलाइटिस को लेकर इन संस्थाओं ने मुजफ्फरपुर में रिसर्च वर्क किया है.
- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी,(एनआईवी) पूना
- नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल,(एनसीडीसी) नई दिल्ली
- सेंट्रल फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) अटलांटा यूएसए
- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कम्युनिकेबल डिजीज (एनआईसीडी) नई दिल्ली
- राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीच्यूट (आरएमआरई) पटना
दुर्भाग्य है कि सारे शोध कार्य बंद हो गए. जबकि आज आरएमआरआई पटना में बीमार बच्चों का ब्लड सीरम भेजकर रिसर्च की खानापूर्ति हो रही है.
अक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES)
अक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी AES शरीर के मुख्य नर्वस सिस्टम यानी तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है और वह भी खासतौर पर बच्चों में. इंसेफ्लाइटिस को बिहार और पूर्वी यूपी में लोग चमकी बुखार के नाम से भी जानते हैं
लक्षण-
- शुरुआत तेज बुखार से होती है
- फिर शरीर में ऐंठन महसूस होती है
- इसके बाद शरीर के तंत्रिका संबंधी कार्यों में रुकावट आने लगती है
- मानसिक भटकाव महसूस होता है
- बच्चा बेहोश हो जाता है
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- शरीर में चमकी होना
- दौरे पड़ने लगते हैं
- घबराहट महसूस होती है
- हाथ पैर में कंपन होना, पूरे शरीर या किसी अंग में लकवा मार जाना जैसे लक्षण शामिल हैं
- कुछ केस में तो पीड़ित व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है
- अगर समय पर इलाज न मिले तो पीड़ित की मौत हो जाती है. आमतौर पर यह बीमारी जून से अक्टूबर के बीच देखने को मिलती है.
छोटे बच्चों में दिखने वाले लक्षण
· सिर में उभरी हुई चित्ती· शरीर में जकड़न नज़र आना· दूध कम पीना· चिड़चिड़ापन और बात-बात पर रोना
ऐसे करें बचाव
- गंदे पानी के संपर्क में आने से बचें
- मच्छरों से बचाव के लिए घर के आसपास पानी न जमा होने दें
- बारिश के मौसम में बच्चों को बेहतर खान-पान दें
- मच्छरदानी या कीटनाशक दवा का उपयोग करें
- बच्चों को पूरे कपड़े पहनाएं ताकि उनकी स्कीन ढकी रहे
- इन सब के अलावा इन्सेफेलाइटिस से बचने के लिए टीकाकरण भी मौजूद है.
इलाज कैसे होता है
दिमागी बुखार जिस भी वजह से हो, उसके लक्षण लगभग एक जैसे होते हैं. इलाज के दौरान डॉक्टर यह पता करने की कोशिश करते हैं कि बीमारी वायरल इंफेक्शन से तो नहीं हुई है क्योंकि वायरल इंफेक्शन का इलाज मौजूद नहीं है. इसलिए डॉक्टर लक्षणों का इलाज करते हैं. बुखार और दिमाग में सूजन से पैदा होने वाले दबाव को कम करने की कोशिश की जाती है. इस बीमारी के मरीज़ों को ऑक्सिजन की बहुत जरूरत होती है.
इंसेफेलाइटिस की वजह
- भारी संख्या में बच्चों की मौत के पीछे की वजहों को लेकर चिकित्सक एकमत नहीं हैं.
- कुछ चिकित्सकों का मानना है कि इस साल बिहार में फिलहाल बारिश नहीं हुई है, जिससे बच्चों के बीमार होने की संख्या लगातार बढ़ रही है.
- भारी संख्या में बच्चों के बीमार होने के पीछे लीची कनेक्शन को भी देखा जा रहा है.
असली वजह है हाइपोग्लाइसीमिया यानी लो-ब्लड शुगर
- अक्यूट इंसेफेलाइटिस को बीमारी नहीं बल्कि सिंड्रोम यानी परिलक्षण कहा जा रहा है, क्योंकि यह वायरस, बैक्टीरिया और कई दूसरे कारणों से हो सकता है.
- स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, अब तक हुई मौतों में से 80 फीसदी मौतों में हाइपोग्लाइसीमिया का शक है.
- शाम का खाना न खाने से रात को हाइपोग्लाइसीमिया या लो-ब्लड शुगर की समस्या हो जाती है.
- खासकर उन बच्चों के साथ जिनके लिवर और मसल्स में ग्लाइकोजन-ग्लूकोज की स्टोरेज बहुत कम होती है.
- इससे फैटी ऐसिड्स जो शरीर में एनर्जी पैदा करते हैं और ग्लूकोज बनाते हैं, का ऑक्सीकरण हो जाता है.
बच्चों की मौत के लिए लीची को भी दोषी क्यों ठहराया जा रहा है-
- लो ब्लड शुगर का लीची कनेक्शन: द लैन्सेट' नाम की मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक, लीची में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पदार्थ जिन्हें hypoglycin A और methylenecyclopropylglycine (MPCG) कहा जाता है.
- शरीर में फैटी ऐसिड मेटाबॉलिज़म बनने में रुकावट पैदा करते हैं. इसकी वजह से ही ब्लड-शुगर लो लेवल में चला जाता है और मस्तिष्क संबंधी दिक्कतें शुरू हो जाती हैं और दौरे पड़ने लगते हैं.
- अगर रात का खाना न खाने की वजह से शरीर में पहले से ब्लड शुगर का लेवल कम हो और सुबह खाली पेट लीची खा ली जाए तो अक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम AES का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.
खाली पेट लीची न खाएं बच्चे
बताया जाता है कि गर्मी के मौसम में बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास के इलाके में गरीब परिवार के बच्चे जो पहले से कुपोषण का शिकार होते हैं वे रात का खाना नहीं खाते और सुबह का नाश्ता करने की बजाए खाली पेट बड़ी संख्या में लीची खा लेते हैं. इससे भी शरीर का ब्लड शुगर लेवल अचानक बहुत ज्यादा लो हो जाता है और बीमारी का खतरा रहता है. ऐसे में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने माता-पिता को सलाह दी है कि वे बच्चों को खाली पेट लीची बिलकुल न खिलाएं.