दुनिया भर में अनुमानित 7.8 करोड़ शिशु यानी प्रत्येक पांच में से तीन शिशुओं को जन्म लेने के बाद शुरुआती प्रथम घंटे में स्तनपान नहीं कराया जाता है, जो उन्हें मौत और रोगों के उच्च जोखिम की ओर ले जा सकता है।
साथ ही इससे शिशुओं में उच्च शारीरिक और मानसिक विकास मानकों को पूरा करने की संभावनाएं कम हो जाती हैं। भारत ने हालांकि 2005-15 के एक दशक के भीतर कुछ प्रगति की है और जन्म के प्रथम घंटे में स्तनपान का आंकड़ा दोगुना हो गया है। लेकिन देश में सीजेरियन से पैदा होने वाले नवजात बच्चों के बीच स्तनपान की प्रक्रिया में काफी कमी पाई गई।
रपट के अनुसार, भारत का आंकड़ा इस तथ्य को इंगित करता है कि जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कराने की प्रक्रिया भारत में लगभग दोगुनी हो गई है, जो 2005 में 23.1 प्रतिशत थी और बढ़कर 2015 में 41.5 प्रतिशत हो गई।
जिन बच्चों को जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान नहीं कराया जाता है, उनमें मृत्यु दर का जोखिम 33 प्रतिशत अधिक होता है। भारत इस चुनौती का सामना कर रहा है कि स्तनपान समय से शुरू हो और बच्चों को जन्म के प्रथम छह महीनों में केवल स्तनपान ही कराया जाए।
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भारत में यूनिसेफ की प्रतिनिधि यास्मीन अली हक ने कहा, 'स्तनपान सभी बच्चों को जीवन की सबसे स्वस्थ शुरुआत देता है। यह मस्तिष्क के विकास को उत्तेजित करता है, उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देता है और उन्हें आगे पुरानी रोगों से बचाने में मदद करता है।'
विश्व स्तनपान सप्ताह (1-7 अगस्त) का लक्ष्य स्थायी विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने और माता को स्तनपान देने के लिए प्रोत्साहित करना है।
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Source : IANS