Asthma in children: भारत में एक बीमारी तेजी से पांव पसार रही है. बच्चे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं. बच्चों को अटैक पड़ने से उनके मां-बाप भी भयभीत हो रहे हैं. ग्लोबल अस्थमा रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 6.2 प्रतिशत भारतीय अस्थमा से प्रभावित हैं. वहीं भारत में लगभग 3.3% बच्चे बचपन में होने वाले ब्रोन्कियल अस्थमा से जूझ रहे हैं. एक रिपोर्ट बताती है कि इस बीमारी से बच्चों को करीब 14 मिलियन स्कूल डेज छूट गए. यह बीमारी वायरस के कारण फेफड़ों में होने वाले संक्रमण के साथ-साथ एलर्जी, पर्यावरण प्रदूषण, वंशानुगत कारकों से होती है. इन दिनों एंटीबायोटिक के उपयोग के साथ-साथ तंबाकू के धुएं के संपर्क में आने से बच्चों को अस्थमा अटैक पड़ रहा है. ऐसे में अगर आपके बच्चे को अक्सर खांसी और गले में घरघराहट महसूस होती है तो सावधान हो जाएं. बच्चे सीने में जकड़न और सांस लेने में तकलीफ लेने की शिकायक करें तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें. आइए जानते हैं इसके बारे में.
किन बच्चों को लेता है चपेट में
जो लोग धूम्रपान करते हैं उनके बच्चों में अस्थमा होने की संभावना अधिक होती है. पर्यावरण प्रदूषण, वंशानुगत कारणों, खाने-पीने के ऑप्शन्स, एलर्जी के संपर्क में आने और एंटीबायोटिक के इस्तेमाल के परिणामस्वरूप अस्थमा 1 से 14 साल के बच्चों में ज्यादा देखने को मिल रहा है. कुछ सिचुएशन जैसे सर्दी या दूसरे ब्रीदिंग इन्फेक्शन के कारण, दूध पिलाने से शिशुओं में, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रिफ्लक्स और बदलाव या मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण भी अस्थमा की बीमारी हो सकती है.
बच्चों में अस्थमा कैसे होता है डायग्नोस्ट
5 साल से कम उम्र के बच्चों में अस्थमा की पहचान करना बहुत मुश्किल होता है. क्योंकि नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों में अस्थमा के प्रमुख लक्षण जैसे घरघराहट और खांसी अन्य बीमारियों के कारण भी होते हैं. लेकिन डायग्नोस्टिक टेस्ट का इस्तेमाल 5 साल से कम उम्र के बच्चों में आसानी से या सटीक तरीके से नहीं किया जा सकता है.
ये दिखें लक्षण तो हो जाएं सावधान
अगर आपके बच्चों को अक्सर खांसी और घरघराहट होती रहती है तो ये अस्थमा का मुख्य लक्षण है. बिना किसी रुकावट के सांस लेने में कठिनाई या सांस लेने में तकलीफ, सांस छोड़ते समय तेज आवाज, सीटी जैसी आवाज और बीच-बीच में कुछ समय के लिए खांसी और घरघराहट होना भी इसका संकेत है. यदि कोई बच्चा खुले वातावरण में सांस लेने के लिए हांफ रहा है, या फिर इतनी जोर से सांस ले रहा है कि पेट पसलियों के नीचे दब गया है या सांस लेने के कारण उसे बोलने में कठिनाई हो रही है, तो माता-पिता को डॉक्टर के पास जाना चाहिए.
इन तरीकों से अस्थमा को मैनेज करे
ट्रिगर फिक्स करें: बच्चे के डॉक्टर को दिखाएं. उनकी मदद से उन ट्रिगर्स को फिक्स करने में मदद करें जो उनके अस्थमा के लक्षणों को बढ़ा सकते हैं.
रूपरेखा बनाएं: अपने चिकित्सक की मदद से अस्थमा के डेली मैनेजमेंट, दवाओं के इस्तेमाल और अस्थमा के अटैक की स्थिति में किए जाने वाले कामों की रूपरेखा बनाएं.
रेगुलर चेकअप: बच्चे को डॉक्टर के पास रेगुलर चेकअप के लिए लेकर जाएं, ताकि इस बात का अनुमान लगाने में आसानी हो कि उनका अस्थमा कितना मैनेज हो रहा है.
फिजिकल एक्टिविटी : वॉक या स्विमिंग जैसी कई एक्टिविटीज हैं, जो सांस से संबंधित मांसपेशियों को मजबूत बनाने का काम करती हैं और ओवरऑल फिटनेस को भी बढ़ावा देती हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. News Nation इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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