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Mental Health: बंद कमरे या लिफ्ट में अकेले होने पर कांपने लगती है रूह! जानिए किस वजह से होता है ऐसा

किसी-किसी की हालत तो इतनी खराब होती है कि वो सीटी स्कैन या एमआरआई जैसे टेस्ट भी नहीं करवा पाते हैं. क्या ऐसी अजीबो गरीब चीजें आपके साथ भी हो रही हैं तो यह स्थिति क्लॉस्ट्रोफोबिया के संकेत हैं.

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Neha Singh
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Mental Health

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Mental Health: अकेले कमरे या बंद लिफ्ट में जाने पर कई बार कुछ लोगों की रूह कांपने लग जाती है. उन्हें ऐसा लगता है कि कोई पीछे से आकर पकड़ लेगा. कई लोगों को तंग और संकरी जगहों पर जाने भी डर लगता है कि वो वहां से वापस नहीं निकल पाएंगे. किसी-किसी की हालत तो इतनी खराब होती है कि वो  सीटी स्कैन या एमआरआई जैसे टेस्ट भी नहीं करवा पाते हैं. क्या ऐसी अजीबो गरीब चीजें आपके साथ भी हो रही हैं तो यह स्थिति क्लॉस्ट्रोफोबिया के संकेत हैं. दरअसल, यह एक मानसिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति के अंदर एक गहरा डर होता है और जब भी वह किसी बंद जगह पर जाता है तो उसे चक्कर आने लगते हैं, शरीर कांपने लगता है और घबराहट महसूस होने लगती है. कई लोगों को तो बंद जगह पर जाने से पैनिक अटैक भी आ जाता है. आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से. 

 12.5 फीसदी आबादी क्लॉस्ट्रोफोबिया का शिकार

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार, क्लॉस्ट्रोफोबिया बंद और छोटी जगहों से लगने वाला एक प्रकार का डर है. इस डर से 12.5 फीसदी आबादी ग्रस्त है, जिसमें महिलाओं की तादाद ज्यादा है. क्लॉस्ट्रोफोबिया से ग्रस्त लोग बंद स्थानों से डरते हैं. फिर चाहे वो कोई गुफा हो, एमआइआई मशीन हो या भीड़भाड़ वाली जगह. ऐसी जगहों पर जाते ही उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगती है. 

सांस लेने में होती है तकलीफ 

क्लॉस्ट्रोफोबिया होने पर व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ का सामना करना पड़ता है और छाती में खिंचाव महसूस होने लगता है. साथ ही दर्द की समस्या बनी रहती है.  मुंह सूखने लगता है और पेट में भी दर्द व ऐंठन बढ़ जाती है. 

डर की वजह से छूट जाते पसीने

क्लॉस्ट्रोफोबिया से पीड़ित इंसान को किसी बंद जगह पर पहुंचकर डर के कारण पसीना आने लगता है और सिरदर्द भी होता है. क्लॉस्ट्रोफोबिया की वजह से अचानक से एंग्जाइटी बढ़ने लगती है, जिसके चलते हाथों और पैरों में झनझनाहट महसूस होती है. 

क्लॉस्ट्रोफोबिया से ऐसे पाएं निजात

कॉग्नीटिव बिहेवियरल थेरेपी की मदद से किसी भी तरह के डर को दूर करने में मदद मिलती है. इसमें नकारात्मक विचारों को रोका जाता है, जो क्लॉस्ट्रोफोबिया को ट्रिगर करने वाली स्थितियों से पैदा होते हैं. विचारों में बदलाव आने से छोटी और बंद जगहों से लगने वाला डर कम हो जाता है. 

डर पर काबू पाने की करें कोशिश 

एक्सपोजर थेरेपी का इस्तेमाल चिंता और डर की स्थिति से उबरने के लिए किया जाता है. इस थेरेपी के दौरान क्लॉस्ट्रोफोबिया को ट्रिगर करने के लिए एक ऐसी सिचुएशन तैयार की जाती है, जिससे डर पर काबू पाया जा सके. बार-बार ऐसी परिस्थितियों के संपर्क में आने से इंसान के अंदर से डर की भावना कम होने लगती है. 

ब्रीदिंग और विजुअलाइजेशन की मदद लें

मन में बसे डर को बाहर निकालने के लिए ब्रीदिंग और विजुअलाइजेशन की मदद लें. डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज से मन में मौजूद विचारों को नियंत्रित किया जा सकता है. इसके अलावा किसी चीज पर ध्यान लगाने से मसल्स में रिलैक्सेशन बढ़ने लगता है. रिलेक्सेशन तकनीक डर को काबू करने में काफी मददगार है. 

डॉक्टर की सलाह से लें दवाइयां 

थेरेपी से डर की भावना को कंट्रोल करने के अलावा डॉक्टर से जांच और सुझाव के बाद ही दवा लें. इससे मानसिक स्वास्थ्य सही बना रहता है और फोबिया से बचा जा सकता है. एंटीडिप्रेसेंट या एंटी एंग्जाइटी दवाएं दिमाग को सुकून पहुंचाती है. लेकिन किसी भी दवाई का सेवन डॉक्टर की सलाह लेकर ही करें. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. News Nation इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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