परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव, रिजल्ट का डर, पढ़ाई का दबाव, रैगिंग जैसी कई घटनाओं के कारण छात्र आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक्सीडेंटल डेट्स एंड सुसाइड इन इंडिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में भारत में 13,000 से ज्यादा छात्रों ने अपनी जान गंवाई है। यानी औसतन प्रति दिन 35 से ज्यादा छात्रों मौत हुई है। छात्रों में आत्महत्या के बढ़ते ट्रेंड को देखते हुए शिक्षा मंत्रालय ने ‘उम्मीद’ नामक नई पहल की है।
‘उम्मीद’ ड्राफ्ट गाइडलाइंस एवरी चाइल्ड मैटर्स यानी हर बच्चा मायने रखता, की धारणा रखी गई है। गाइडलाइंस बताती है कि कि छात्र व्यक्तिगत और सामाजिक चुनौतियों से निपटने का संघर्ष करता है, तो उनमें उदासी, असंतोष, हताशा, निराशा, मूड स्विंग्स और स्थिति गंभीर होने पर आत्महत्या या सेल्फहार्म जैसी भावनाएं देखने को मिलती हैं।
प्रतियोगी परीक्षाओं से जुड़े सबसे प्रतिष्ठित संस्थानो में शामिल, करियर लॉन्चर की अध्यक्ष सुजाता क्षीरसागर के मुताबिक कोचिंग संस्थानों के प्रतिस्पर्धी माहौल में छात्रों का मानसिक बीमारियों से पीड़ित होना आम है। ऐसे में उम्मीद जैसा कदम तारीफ़ के काबिल है। हम मानते हैं कि शिक्षा केवल किताबों के बारे में नहीं है, बल्कि हमारे छात्रों के सम्पूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के बारे में भी है। शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइंस एक सुरक्षित और ज्यादा सहयोगपूर्ण शैक्षिक माहौल (एजुकेशन ईकोसिस्टम) बनाने की दिशा में काम कर सकती है।
आंकड़े बताते हैं कि छात्रों की आत्महत्याओं के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। 2021 में 13,000 से अधिक मामले सामने आए हैं। यह 2020 में दर्ज की गई 12,526 मौतों की तुलना में 4.5 प्रतिशत ज्यादा है। चौंकाने वाली बात यह है कि रिपोर्ट की गई 10,732 आत्महत्याओं में से 864 आत्महहत्या परीक्षा में फेल होने के डर से की गयी हैं। इस स्थिति पर जैमिट के फाउंडर आरुल मालवीय ने आईएएनएस से कहा कि वर्तमान समय में भारत आत्महत्या जैसे मामलो का सामना कर रहा है। इसका मुख्य कारण पढ़ाई का दबाव और माता-पिता या शिक्षकों की अवास्तविक अपेक्षाएं हैं। ये सभी चीजें छात्रों में निराशा की भावना और लगातार उदासी की भावना पैदा कर रही हैं। यह गाइडलाइंस, शिक्षकों, स्कूल स्टाफ, छात्रों व उनके परिवारों को शामिल करके इस चुनौती से निपटने की दिशा में सक्रिय रूप से काम करेगा।
16 पन्ने के इस ड्राफ्ट में शिक्षा मंत्रालय ने उन पहलुओं का जिक्र किया है जो छात्रों को आत्महत्या के लिए उकसाते है। गाइडलाइंस में स्कूलों के कहा गया है कि छात्रों में दबाव के लक्षण, रिस्क फैक्टर्स दिखाई दे तो तुरंत ऐसे छात्रों पर ध्यान दिया जाए। सुसाइड को लेकर फैले भ्रम व अफवाहों को दूर करें। मंत्रालय का कहना है कि सुसाइड रोकना एक सामूहिक प्रयास है जिसे स्कूल, पैरेंट्स और कम्यूनिटी को मिलकर करना होगा। इसके तहत बच्चों की फीलिंग्स, उनके एक्शन और व्यवहार को समझना होगा। यह सुनिश्चित करना होगा कि छात्रों पर किसी प्रकार का एकेडमिक प्रेशर तो नहीं है, या फिर वे परिवार, दोस्तों या किसी के भी द्वारा बुली तो नहीं किए जा रहे।
एमबीडी, आसोका की मैनेजिंग डायरेक्टर मोनिका मल्होत्रा कंधारी ने आईएएनएस को बताया कि पिछले कुछ सालों में हमारे छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य काफी चिंताजनक रहा है। छात्रों की आत्महत्या हमारे लिए सदमा है। अब समय आ गया है कि हम इस समस्या को पहचानें। हम युवाओं की भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक स्थिति के बारे में गहराई से चिंतित हैं। उम्मीद गाइडलाइंस दबाव के समय में छात्रों का समर्थन करने के लिए एक सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण को बढ़ावा देंगे और खुले संवाद संचार के महत्व पर जोर देंगे।
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Source : IANS