समाज में जहां रिश्तों को सुरक्षा और सम्मान की डोर से बांधकर देखा जाता है, वहां अगर रिश्ते उत्पीड़न और पीड़ा का कारण बन जाएं तो सवाल उठता है कि क्या रिश्ते की परिभाषा बदल चुकी है या फिर कानून का हाथ मजबूत है. यह कहानी है नाबालिग पत्नी के साथ हुए एक अपराध की, जहां कानून ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया कि रिश्ते का दर्जा चाहे जो भी हो लेकिन किसी के अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकता.बॉम्बे हाई कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले ने ना सिर्फ समाज को आईना दिखाया है बल्कि यह भी साफ कर दिया है कि कानून के सामने बाल अधिकार सर्वोपरि हैं.
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संबंध बनाने के बाद नाबालिग गर्भवती हो गई
मामला था 24 साल के एक युवक का जिसे अपनी नाबालिक पत्नी के साथ यौन उत्पीड़न के लिए 10 साल की सजा सुनाई गई थी. आरोपी ने अपनी याचिका में खुद को बचाने की कोशिश यह कहते हुए की कि पीड़िता उसकी पत्नी है, लेकिन हाई कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा अगर पत्नी की उम्र 18 साल से कम है तो सहमति या रिश्ते का तर्क अपराध को ढक नहीं सकता. कहानी की शुरुआत होती है 2019 से जब महिला ने पहली बार शिकायत दर्ज कराई. उसने कहा कि वह युवक के साथ रिश्ते में थी लेकिन उसके मना करने के बावजूद युवक ने जबरदस्ती संबंध बनाए. वह भी एक बार नहीं कई बार, जिससे वह गर्भवती हो गई और मजबूरन युवक से शादी करनी पड़ी, लेकिन कहानी यहां खत्म नहीं हुई.
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शादी के बाद भी बंद नहीं हुआ उत्पीड़न
महिला के आरोपों के मुताबिक शादी के बाद भी उसे शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न सहना पड़ा. युवक ने गर्भपात कराने के लिए पत्नी पर दबाव बनाया, लेकिन उसने हिम्मत दिखाई अपने बच्चे को जन्म दिया और न्याय की लड़ाई में डटी रही. अपने बचाव में युवक ने कोर्ट में तर्क दिया ...चूंकि महिला उसकी पत्नी है इसलिए उनके बीच शारीरिक संबंध को बलात्कार नहीं माना जा सकता. लेकिन हाई कोर्ट ने उसके इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ सहमति या बिना सहमति किसी भी परिस्थिति में यौन संबंध बनाना कानून की नजर में बलात्कार ही है.
शादी इस अपराध के लिए कोई ढाल नहीं
शादी इस अपराध के लिए कोई ढाल नहीं हो सकती. पीड़िता के जन्म प्रमाण पत्र और अन्य दस्तावेजों के आधार पर अदालत ने यह साफ किया कि घटना के समय महिला नाबालिग ही थी. इस फैसले ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि रिश्तों के नाम पर किसी का बचाव नहीं किया जा सकता और ना ही किसी का शोषण किया जा सकता है. यह कहानी सिर्फ एक नाबालिग लड़की की ही नहीं बल्कि उन लाखों महिलाओं और बच्चियों की है जो अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं.