RTI Act: पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम पर संकट की चेतावनी देते हुए केंद्र सरकार से आठ सूचना आयुक्तों के पदों की रिक्तियों पर सवाल उठाए हैं. चिदंबरम का आरोप है कि सरकार द्वारा सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी RTI अधिनियम को कमजोर करने की सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है, जिससे इस अधिनियम को 'मृत्युदंड' दिया जा रहा है.
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CIC में आठ पद रिक्त, सुचारु कार्य में बाधा
आपको बता दें कि चिदंबरम ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि वर्तमान में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) में आठ सूचना आयुक्तों के पद खाली हैं. उन्होंने कहा कि आरटीआई अधिनियम के तहत CIC में एक मुख्य सूचना आयुक्त (Chief Information Commissioner) और 10 सूचना आयुक्त होने चाहिए. लेकिन वर्तमान में केवल मुख्य सूचना आयुक्त और दो सूचना आयुक्त पदस्थ हैं.
वहीं आपको बता दें कि चिदंबरम ने अपने सवाल में कहा, ''आठ पद रिक्त क्यों हैं? क्या इसका कारण यह है कि RTI अधिनियम ने सरकार की परतों को खोलकर उसे जिम्मेदार ठहराने का काम किया है?'' उनका मानना है कि इस देरी के पीछे सरकार की मंशा RTI अधिनियम को कमजोर करने की हो सकती है ताकि जनता को आवश्यक जानकारी प्राप्त न हो सके.
सरकार पर आरटीआई अधिनियम को कमजोर करने का आरोप
बता दें कि चिदंबरम का दावा है कि केंद्र सरकार ने आरटीआई अधिनियम में संशोधन कर सेवा शर्तों को बदल दिया है, जिससे सूचना आयुक्तों की स्वतंत्रता पर सीधा प्रभाव पड़ा है. उनका आरोप है कि यह सब आरटीआई अधिनियम की प्रभावशीलता को कमजोर करने और इसे एक औपचारिकता मात्र बना देने के उद्देश्य से किया गया है.
साथ ही बता दें कि उन्होंने कहा, ''आरटीआई अधिनियम को समाप्त करने का सबसे सुनिश्चित तरीका है कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति न की जाए.'' इस देरी के कारण आरटीआई मामलों को निपटाने में गंभीर देरी हो रही है, जिससे सूचना प्राप्त करने का अधिकार अधर में लटक जाता है और इसके परिणामस्वरूप आम जनता के अधिकार हाशिए पर चले जाते हैं.
अदालतों में पहुंचा मामला, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
इसके अलावा आपको बता दें कि सूचना आयुक्तों की रिक्तियां अब अदालतों में भी चर्चा का विषय बन गई हैं. अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को CIC और राज्य सूचना आयोगों (SIC) में रिक्त पदों को तत्काल भरने के निर्देश दिए थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि ये पद खाली रहते हैं तो CIC और SICs 'अप्रभावी' हो जाएंगे और आरटीआई अधिनियम के तहत नागरिकों का सूचना प्राप्त करने का अधिकार 'अप्रासंगिक' हो जाएगा. बता दें कि भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने केंद्र सरकार को तीन सप्ताह का समय दिया था ताकि राज्यों से CIC और SICs की स्वीकृत क्षमता के बारे में जानकारी एकत्र की जा सके.
भविष्य की रणनीति और सरकार की भूमिका
बता दें कि सूचना के अधिकार अधिनियम को लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का महत्वपूर्ण उपकरण माना जाता है. लेकिन सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी और रिक्तियों का मुद्दा इस अधिनियम के भविष्य को चुनौती देता नजर आ रहा है. चिदंबरम का कहना है कि सरकार की इस उदासीनता ने आरटीआई अधिनियम की कार्यप्रणाली को कमजोर कर दिया है और यदि रिक्त पदों को जल्द नहीं भरा गया, तो यह अधिनियम अपने उद्देश्य को पूरा करने में विफल हो जाएगा. अब यह देखना बाकी है कि सरकार इस मुद्दे पर क्या कदम उठाती है और क्या सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद इन पदों को जल्द भरा जाएगा.