नेशनल बिल्डिंग्स कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन (एनबीसीसी) की डायरेक्टर डिजिटल अरेस्ट हो गए. साइबर ठगों ने उनसे 55 लाख रुपये ऐंठ लिए. खास बात है कि डायरेक्टर खुद एनबीसीसी में साइबर विंग का काम देख रहीं हैं. बावजूद इसके वे ठगों की बात में आ गईं और 55 लाख रुपये गंवा बैठीं.
यह है पूरा मामला
दिल्ली पुलिस की इंटेलिजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रैटेजिक ऑपरेशंस यूनिट ने गिरोह का पर्दाफाश कर दिया. टीम ने साइबर ठगों को गिरफ्तार कर लिया. आईएफएसओ के डीसीपी डॉ. हेमंत तिवारी ने बताया कि 12 सितंबर को एनबीसीसी की डायरेक्टर ने डिजिटल अरेस्ट करके ठगी की शिकायत दर्ज कराई थी. पुलिस को डायरेक्टर ने बताया कि नौ सितंबर को एक व्यक्ति ने उन्हें फोन किया. फॉन पर ठग ने खुद को मुंबई एयरपोर्ट के टर्मिनल-2 के कस्टम कार्यालय का अधिकारी बताया.
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क्या बोला ठग
डीसीपी तिवारी के अनुसार, कॉल पर ठग ने कहा कि छह सितंबर को एक पार्सल जब्त किया गया था, जिसमें से 16 फर्जी पासपोर्ट, 58 एटीएम कार्ड, 40 ग्राम एमडीएमए बरामद हुआ है. इस पार्टल पर आपका नाम है. मुंबई पुलिस ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया है. उन्हें अब सरेंडर करना होगा. ठग ने डायरेक्टर को डराते हुए कहा कि आपके खिलाफ सीबीआई जांच चल रही है. जल्द गिरफ्तारी होगी. ठग ने कहा कि जब तक गिरफ्तारी नहीं हो जाती, तब तक वीडियो कॉल के माध्यम से आप पर नजर रखी जाएगी.
पैसे खपाने के लिए कंपनी खोली
साइबर यूनिट ने आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों की पहचान- प्रभात कुमार, राजेश कुमार और अर्जुन सिंह के रूप में हुई है. प्रभात और राजेश ग्रेजुएट हैं तो अर्जुन पोस्ट-ग्रेजुएट. प्रभात और राजेश कैमेलिया सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के मालिक हैं. यह वही कंपनी है, जिसकी मदद से आरोपी ठगी के पैसों की हेराफेरी करते थे. अर्जुन फर्जी बैंक खाते खोलने में इनकी मदद करता था. पुलिस ने कंपनी से संबंधित पासबुक, चेक बुक, जरूरी दस्तावेज, पैन कार्ड, तीन मोबाइल फोन, सिम कार्ड और 20 लाख रुपये जब्त किए हैं.
डिजिटल अरेस्ट क्या होता है
डिजिटल अरेस्ट वह होता है, जब किसी शख्स को ऑनलाइन माध्यम से डराया जाता है. उसे सरकारी एजेंसी के माध्यम से अरेस्ट हो गया था. उसे इसके बदले पेनल्टी या जुर्माना देना होता है. डिजिटल अरेस्ट जैसा शब्द कानून में नहीं है.