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India Independence on Lease: क्या 99 साल की लीज पर मिली थी भारत को आजादी? 21 साल बाद गुलामी का खतरा?

India Independence on Lease: भारत इस साल अपना 78 स्वतंत्रता दिवस मनाने वाला है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत को 99 सालों की आज़ादी मिलने का सच क्या है?

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Inna Khosla
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India Independence on Lease

India Independence on Lease

India Independence on Lease: 1947 से लेकर अब तक हर बार 15 अगस्त के दिन देश के प्रधानमंत्री लाल किले पर और 26 जनवरी के दिन राष्ट्रपति कर्तव्य पथ पर झंडा फहराकर भारत देश को मिली आजादी और संविधान के लागू होने की याद दिलाते आ रहे हैं. लेकिन क्या 21 साल बाद भारत फिर ब्रिटेन का गुलाम हो जाएगा. कोई कहता है कि भारत को आजादी 15 अगस्त को नहीं मिली क्योंकि 1950 तक तो हम ब्रिटेन के डोमिनियन में थे. अगर सच में हमें आजादी मिली होती तो हमने सभी अंग्रेजों को मारकर क्यों नहीं भगाया. आजादी के बाद भी अंग्रेज अफसर लॉर्ड माउंटबेटन (Viceroy Lord Mountbatten) को गवर्नर जनरल क्यों बनाया गया. क्या भारत को आजादी मिली ही नहीं लीज पर ली गई थी और 99 साल के बाद हम फिर से गुलाम हो जाएंगे.

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क्या छिन सकती है भारत की आजादी ?

जब ब्रिटिश संसद ने इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट पास करके पावर का ट्रांसफर किया या कहे कि भारत को आजाद किया तो क्या ब्रिटिश सरकार फिर से इस एक्ट को वापस लेकर भारत की आजादी को छिन सकती है क्योंकि संसद द्वारा बनाए गए एक्ट को तो संसद द्वारा वापस भी लिया जा सकता है. इस साल भारत अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस तो मना रहा है लेकिन उससे कुछ समय पहले बीजेपी की फीमेल स्पोक्स पर्सन रूचि पाठक का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें रूचि ने कहा था कि भारत पूरी तरह से आजाद नहीं है. नेहरू ने लिखित समझौता करके ब्रिटिश क्राउन से 99 साल के पट्टे पर भारत को आजादी दिलाई है. इस बयान को लेकर कांग्रेस के स्पोक्स पर्सन गौरव जैन ने तंज कसते हुए कहा था कि बीजेपी के प्रवक्ता WhatsApp युनिवर्सिटी की टॉपर हैं. 

क्या है 99 साल की आजादी का मामला ? (British India is on lease for 99 years)

1 जनवरी 1947 यानी कि नए साल के दिन एक काले रंग की ऑस्टिन प्रिंसेस कार ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर के निवास 10 डाउनिंग स्ट्रीट पर आकर रुकती है इस कार में बैठे थे लुईस माउंटबेटन जो कि उस समय ब्रिटेन के राजा जॉर्ज सिक्स के चचेरे भाई और 1939 से 1945 तक पूरे 6 साल चले सेकंड वर्ल्ड वॉर के आर्मी चीफ ऑफिसर थे. प्राइम मिनिस्टर चाहती थी कि माउंटबेटन को भारत का नया वायसराय बनाकर भेजा जाए जिससे कि भारत में चल रहे ट्रांसफर ऑफ पावर के मुद्दे को सॉल्व किया जा सके.

ट्रांसफर ऑफ पावर का मतलब भारत में भारत का खुद का एक स्टेबल डेमोक्रेटिक सिस्टम तैयार करना था और फिर एक लंबे डिस्कशन के बाद उस समय की पीएम ने घोषणा करवा दी कि ब्रिटेन गवर्नमेंट जून 1948 से पहले भारत को पूर्ण स्वराज्य का अधिकार दे देगी. लेकिन, माउंटबेटन यह जानते थे कि ट्रांसफर ऑफ पावर का मामला बहुत पेचीदा है. इसको सुलझाना लोहे के चने चबाने जैसा होगा इसलिए वो इस मुसीबत में फंसना नहीं चाहते थे. 

इस मुसीबत से बचने के लिए वो अपने चचेरे भाई जॉर्ज सिख से मिलने गए जो माउंट बेटन को डिकी कहकर बुलाते थे. जॉर्ज ने इस समस्या से बचने में उनकी कोई मदद तो नहीं की लेकिन माउंटबेटन से कहा कि अभी भारत में इस तरह का माहौल बना हुआ है कि कांग्रेस का कोई भी लीडर नहीं चाहता कि भारत कॉमनवेल्थ का हिस्सा बना रहे. तुम्हें यह कोशिश करनी है कि भारत एकजुट रहे या फिर उसका बंटवारा करना पड़े लेकिन भारत कॉमनवेल्थ का हिस्सा बना रहना चाहिए. अब ट्रांसफर ऑफ पावर और भारत के बंटवारे की जिम्मेदारी लुईस माउंटबेटन पर थी.

भारत के बंटवारे का प्लान (Partition of India Plan)

भारत पहुंचकर माउंटबेटन ने सबसे पहले नेहरू जी से मुलाकात की. नेहरू जी और माउंटबेटन दोनों ही पॉलिटिक्स में एक्टिव रहने की वजह से एक दूसरे को बहुत अच्छे से जानते थे. नेहरू जी भी चाहते थे कि माउंटबेटन उनके साथ मिलकर काम करें क्योंकि भारत की सभी रियासतों के दावेदार ब्रिटिश शासन के करीब थे. लेकिन जब माउंटबेटन ने भारत के बंटवारे की बात की तो नेहरू जी ने इस संबंध में गांधी जी से बात करने की सलाह दी. नेहरू जी की सलाह पर माउंटबेटन ने गांधी जी से मुलाकात की. गांधी जी शुरुआत से ही बंटवारे के विरोधी रहे हैं और फिर माउंटबेटन के मुंह से बंटवारे की बात सुनकर वो आग बबूला हो गए. उन्होंने गुस्से में कहा था आप हमें हमारे हाल पर छोड़ दो और जितना जल्दी हो सके पतली गली से निकल लो... कैसे क्या करना है हम सब कर लेंगे. हमें आपकी कोई जरूरत नहीं है. गांधी जी के पास इतनी ताकत तो नहीं थी कि वह अकेले बंटवारे को रोक सकें लेकिन माउंटबेटन इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि यह बूढ़ा अकेले तो कुछ कर नहीं सकता लेकिन अगर इसने हमारे प्लान का विरोध किया तो हिंदुस्तान की पूरी जनता रोड पर उतर आएगी.

इसी बीच माउंट बेटन को कांग्रेस के सबसे बड़े नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल का सख्त भाषा में लिखा हुआ एक खत मिला जिसमें उन्होंने किसी अपॉइंटमेंट के बारे में लिखा था. इस खत में लिखी हुई सख्त भाषा माउंटबेटन को पसंद नहीं आई तो उन्होंने पटेल से यह खत वापस लेने को कहा. लेकिन, पटेल नहीं मानें तो माउंटबेटन ने धमकी देते हुए उनसे कहा था कि आप मुझे समझते क्या हैं अगर आपको सब कुछ अपने हिसाब से ही करना है तो फिर आप ही कर लो मैं भी अपना विमान बुलाकर वापस चला जाता हूं. माउंटबेटन की इस बात को सुनकर पटेल ने अपना खत वापस लिया और फाड़ दिया. बंटवारे को लेकर तो पटेल भी सहमत नहीं हुए 

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बंटवारे में जिन्ना की भूमिका (Jinnah's role in partition)

जब यह तीनों बड़े नेता बटवारे को लेकर सहमत नहीं थे तो माउंटबेटन जिन्ना के पास गए और उन्हें बताया कि कांग्रेस का कोई भी लीडर बंटवारे को लेकर सहमत नहीं है. लगता है भारत में बंटवारा किए बिना ही इंडियन गवर्नमेंट की सत्ता को एस्टेब्लिश करना पड़ेगा. इस बात पर भड़क कर जिन्ना ने कहा कि मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगा मुझे बस एक चीज चाहिए और वह है पाकिस्तान. हिंदुस्तान का बंटवारा चाहता हूं मैं. जिन्ना के ऐसे लफ्ज सुनकर माउंटबेटन को समझ में आ गया था कि भारत में रहने वाले 30 करोड़ हिंदू और 10 करोड़ मुसलमानों का साथ में रहना मुश्किल तो है. पंजाब और बंगाल की कंडीशन को देखकर माउंटबेटन को यह समझ आ चुका था कि जल्द से जल्द कोई फैसला लेना पड़ेगा क्योंकि अगर गृह युद्ध छिड़ गया तो हम कुछ कर नहीं पाएंगे और फिर वह पंजाब से सीधा शिमला चले गए.

शिमला पहुंचकर ब्रिटिश सरकार द्वारा तैयार किया हुआ प्लान जिसको वह दिल्ली में जाकर सभी के सामने बताने वाले थे उसे उन्होंने शिमला में ही नेहरू जी को दिखाया. नेहरू जी इस प्लान को रातभर में अच्छी तरह स्टडी किया. इस प्लान में लिखी हुई एक लाइन नेहरू को बिल्कुल पसंद नहीं आई और उसमें लिखा था कि हिंदू और मुसलमान चाहे तो दोनों मिलकर इस प्रांत के किसी भी क्षेत्र में अपना अलग एक देश बना सकते हैं और फिर सुबह माउंटबेटन के सामने इस प्लान को बेड पर फेंकते हुए नेहरू जी ने बोला कि अगर ऐसा हुआ तो सब बर्बाद हो जाएगा. कांग्रेस इसके लिए कभी राजी नहीं होगा क्योंकि ऐसा करने से देश कई टुकड़ों में बट सकता है. नेहरू जी की बात को सुनकर माउंटबेटन को भी यह प्लान उचित नहीं लगा और फिर उन्होंने 6 महीने में तैयार किए अपने इस प्लान को रद्द कर दिया. 

माउंटबेटन प्लान क्या था ? (Mountbatten Plan)

अब माउंटबेटन की 6 महीने की मेहनत पानी में चली गई थी और अब उनके पास ट्रांसफर ऑफ पावर को लेकर ना तो कोई प्लान था और ना ही ज्यादा समय क्योंकि गृह युद्ध की संभावना बनी हुई थी. इस समस्या से निपटने के लिए माउंटबेटन को अपने राजनीतिक गुरु वीपी मेनन की याद आयी. वह वीपी मेनन के पास गए और कहा कि गुरुजी इस तरह की समस्या है बताओ क्या करें. तब वीपी मेनन इन्हें डोमिनियन स्टेटस की सलाह दी. डोमिनियन स्टेटस से मतलब भारत और पाकिस्तान दो देश बना दिए जाएंगे और सभी रियासतों को यह हक होगा कि जिस देश को चुनना चाहे अपने हिसाब से चुन सकती है. माउंटबेटन को यह प्लान बहुत पसंद आया और इसीलिए एक प्रोफार्मा तैयार किया जिसे माउंटबेटन प्लान कहा जाता है. इस प्लान को सभी के सामने रखा गया तो कांग्रेस, मुस्लिम लीग और सिख नेता सभी इसके लिए राजी हो गए. सभी की सहमति के बाद इस प्लान को ब्रिटिश सांसद में अप्रूव होने के लिए भेज दिया गया.

यहां पर एक सवाल आता है कि जब कांग्रेस के सभी लीडर बंटवारे के विरोध में थे तो फिर ये इस प्लान को लेकर सहमत कैसे हो गए. इसकी वजह थी कि देश में लगातार गृह युद्ध के हालात बने हुए थे और अगर गृह युद्ध छिड़ जाता तो किसको सत्ता मिलती कुछ कहा नहीं जा सकता था. गृह युद्ध को टालने के लिए कांग्रेस चाहती थी कि कैसे भी करके ट्रांसफर ऑफ पावर का मुद्दा जल्द से जल्द कंप्लीट हो जाए. उनके पास एक ही ऑप्शन था और वह था डोमिनियन स्टेटस (dominion status) क्योंकि इसके लिए ब्रिटिश सांसद को केवल एक कानून पास करना था बस.

कैसे लागू हुआ भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 (Indian Independence Act 1947)

भारत को डोमिनियन स्टेटस से कई फायदे मिले, क्योंकि उस समय भारत का अपना संविधान नहीं था और संविधान बनने तक सिविल सर्वेंट्स और मिलिट्री ऑफिसर्स की जरूरत थी. इस स्थिति को आप इस तरह समझ सकते हैं कि जब तक आपकी खुद की कार नहीं होती, तब तक आप किसी और की कार किराए पर लेकर इस्तेमाल करते हैं, और अपनी कार खरीद लेने पर उसे वापस कर देते हैं. इसके अलावा, 565 रियासतों का विलय भी बाकी था. 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश सरकार द्वारा शाही मुहर लगाई गई और 15 अगस्त 1947 को इंडिपेंडेंस एक्ट लागू हुआ. इसी एक्ट के तहत संविधान सभा बनी और जवाहरलाल नेहरू पहले प्रधानमंत्री बने. लुईस माउंटबेटन को गवर्नर जनरल बनाया गया.

माउंटबेटन को गवर्नर जनरल बनाए रखने का कारण था डोमिनियन स्टेटस. पावर का ट्रांसफर तो हो गया, लेकिन डोमिनियन स्टेटस बना रहा, जिसके अनुसार ब्रिटेन के राजा का एक प्रतिनिधि (गवर्नर जनरल) भारत के राष्ट्रपति के समान जिम्मेदारियों का निर्वहन करता. नेहरू और पटेल चाहते थे कि माउंटबेटन रियासतों के विलय में मदद करें. माउंटबेटन ने सलाह दी कि कुछ रियासतों के अधिकार बनाए रखें जाएं, ताकि वे भारतीय संघ में शामिल हो सकें. अंततः सरदार पटेल की कठोर नीति के चलते 565 में से अधिकांश रियासतों ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए.

माउंटबेटन 21 जून 1948 तक गवर्नर जनरल रहे और उनके इस्तीफे के बाद श्री राजगोपालाचारी पहले भारतीय गवर्नर जनरल बने. 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होते ही डोमिनियन स्टेटस समाप्त हो गया.

अब सवाल यह उठता है कि क्या ब्रिटिश संसद इंडिपेंडेंस एक्ट को रद्द कर भारत की आजादी वापस ले सकती है? संविधान सभा में डॉ. भीमराव आंबेडकर जैसे विद्वानों ने यह सुनिश्चित किया कि भारतीय संविधान का इंडिपेंडेंस एक्ट से कोई संबंध न रहे. संविधान के अनुच्छेद 395 के तहत, भारत का संविधान पूरी तरह से भारतीय नागरिकों द्वारा बनाया गया है और इस पर बाहरी किसी भी शक्ति का कोई प्रभाव नहीं है.

इस बात को स्पष्ट रूप से भारतीय संविधान में लिखा गया है. आज के समय में किसी देश द्वारा किसी दूसरे देश की भूमि पर कब्जा करना असंभव है. उदाहरण के लिए, चीन, सुपरपावर होते हुए भी ताइवान पर कब्जा करने में असमर्थ है, और भारत अभी भी पीओके पर कब्जा करने के बारे में सोच रहा है. ऐसे में भारत की आजादी को छीनना बहुत बड़ी बात होगी.

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